1st Bihar Published by: First Bihar Updated Fri, 14 Nov 2025 02:55:22 PM IST
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Bihar election 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 कई कारणों से ऐतिहासिक बन चुका है। इस बार ना सिर्फ राजनीतिक समीकरण बदले बल्कि कई सीटों पर जातीय आधार पर बेहद दिलचस्प मुकाबले देखने को मिल रहे हैं। सबसे खास बात यह है कि राज्य की कम से कम छह विधानसभा सीटों पर एनडीए और महागठबंधन—दोनों ही गठबंधनों ने भूमिहार जाति के उम्मीदवारों को उतारा है। यानी इन सीटों पर मुकाबला भूमिहार बनाम भूमिहार का है और जीत भी इसी जाति के किसी उम्मीदवार की तय मानी जा रही है।
दरअसल, इन सीटों की सामाजिक बनावट ही कुछ ऐसी है कि यहां भूमिहार वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यही कारण है कि चाहे मोदी-नीतीश की एनडीए हो या तेजस्वी की महागठबंधन, दोनों ने ही इस समाज को पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया है। कई सीटों पर तो भूमिहार बाहुबली आमने-सामने हैं। आइए समझते हैं कौन-कौन सी हैं वे सीटें और क्यों खास हैं ये मुकाबले—
1. मोकामा सीट: अनंत सिंह बनाम सूरजभान परिवार
मोकामा विधानसभा सीट दशकों से बाहुबली छवि वाले नेताओं का गढ़ रही है। कभी दिलीप सिंह ने इस सीट को प्रभावित किया, तो बाद में अनंत सिंह ने इसका राजनीतिक वर्चस्व संभाला। AK-47 केस में दोषी ठहराए जाने के बाद उनकी पत्नी नीलम सिंह विधायक बनीं। इस चुनाव में अनंत सिंह दोबारा मैदान में आए तो उनके खिलाफ महागठबंधन ने बाहुबली सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी को टिकट दिया। मुकाबला बेहद हाई-प्रोफाइल रहा, पर जीत अनंत सिंह की झोली में गई। दोनों उम्मीदवार भूमिहार समाज से ही आते हैं।
2. हिसुआ सीट: नीतू सिंह (कांग्रेस) बनाम अनिल सिंह (BJP)
कांग्रेस उम्मीदवार नीतू देवी (नीतू सिंह) पूर्व मंत्री आदित्य सिंह की बहू हैं और पिछली बार भी विधायक रही हैं। भूमिहार समाज से होने के कारण इन्हें यहां मजबूत समर्थन मिलता रहा है। उनके खिलाफ बीजेपी ने अपने पुराने चेहरे अनिल सिंह को उतारा, जो संघ और ABVP की पृष्ठभूमि से आते हैं। यह सीट भी पूरी तरह भूमिहार प्रभुत्व वाली होने के कारण दोनों ही बड़े नाम इसी जाति से चुने गए। फिलहाल अनिल सिंह आगे चल रहे हैं।
3. बिक्रम सीट: सिद्धार्थ सौरभ (BJP) बनाम अनिल कुमार (कांग्रेस)
पटना की चर्चित बिक्रम सीट पर पिछले दो चुनावों में सिद्धार्थ सौरभ कांग्रेस के टिकट पर जीते। 2024 में पाला बदलकर वे NDA में आ गए और इस बार बीजेपी ने उन्हें मैदान में उतारा। कांग्रेस ने मुकाबले में पूर्व विधायक अनिल कुमार को टिकट दिया। दोनों ही उम्मीदवार भूमिहार समुदाय से हैं और लंबे समय से इस क्षेत्र में अपनी मजबूत पकड़ रखते हैं। इस बार जीत सिद्धार्थ सौरभ के हाथ लगी।
4. मटिहानी सीट (बेगूसराय): बोगो सिंह (RJD) बनाम राज कुमार सिंह (JDU)
बेगूसराय की मटिहानी सीट चुनावी राजनीति में शुरू से ही भूमिहार समाज के वर्चस्व के लिए जानी जाती है। यहां RJD ने जदयू छोड़कर आए पुराने बाहुबली और पूर्व विधायक नरेंद्र सिंह उर्फ बोगो सिंह को टिकट दिया। जदयू ने उनके खिलाफ राज कुमार सिंह को उतारा है, जो पहले लोजपा से जीतकर बाद में जदयू में शामिल हुए। दोनों ही उम्मीदवार भूमिहार होने के कारण मुकाबला बेहद रोचक है। अभी बोगो सिंह बढ़त बनाए हुए हैं।
5. परबत्ता सीट (खगड़िया): डॉ. संजीव कुमार (RJD) बनाम बाबूलाल शौर्य (लोजपा RV)
खगड़िया जिले की परबत्ता सीट पर भी दोनों गठबंधनों ने भूमिहार उम्मीदवारों को उतारा। जदयू के पूर्व विधायक और डॉक्टर संजीव कुमार इस बार RJD के टिकट पर मैदान में हैं। उनके खिलाफ लोजपा रामविलास ने बाबूलाल शौर्य को उतारा। यहां भी मुकाबला दो भूमिहार नेताओं के बीच ही रहा। हालांकि ताज़ा रुझानों में बीजेपी समर्थित उम्मीदवार बढ़त में बताए जा रहे हैं।
6. बरबीघा सीट (शेखपुरा): कुमार पुष्पंजय (JDU) बनाम त्रिशूलधारी सिंह (कांग्रेस)
शेखपुरा की बरबीघा सीट पर भी जातीय समीकरण बेहद रोचक हैं। एनडीए की ओर से जदयू ने कुमार पुष्पंजय को टिकट दिया है तो कांग्रेस ने त्रिशूलधारी सिंह पर दांव खेला है। दोनों ही संपन्न परिवारों से आते हैं और भूमिहार समुदाय के प्रभावशाली चेहरे माने जाते हैं।
क्यों इन 6 सीटों पर भूमिहार बनाम भूमिहार की लड़ाई?
सबसे बड़ा कारण है—वोट बैंक की मजबूती। इन सभी सीटों पर भूमिहार मतदाता 20% से 40% तक हैं, जो परिणाम तय करने की स्थिति में रहते हैं। ऐसे में किसी भी दल के लिए इस समुदाय की अनदेखी करना संभव नहीं था। इतिहास से भी पता चलता है कि इन इलाकों में आमतौर पर भूमिहार समाज ही सत्ता की चाबी रखता है, इसलिए दोनों गठबंधनों ने एक जैसी रणनीति अपनाई—वोटर को नाराज़ न किया जाए, इसके लिए अपने-अपने उम्मीदवार उसी जाति से दिए जाएं।
नतीजा क्या निकलेगा?
ये तो साफ है कि भले हार किसी की हो—एनडीए या महागठबंधन— पर इन छह सीटों पर जीत भूमिहार उम्मीदवारों की ही होगी। 2025 के इस चुनाव में भूमिहार समाज को हर दल ने पूरी अहमियत दी है और इन छह सीटों ने जातीय राजनीति के equation को और ज्यादा स्पष्ट कर दिया है।