1st Bihar Published by: Viveka Nand Updated Mon, 20 Oct 2025 01:55:25 PM IST
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Bihar News: तब और अब की राजनीति में कितना अंतर हो गया. आज मामूली मुखिया बनने पर जनप्रतिनिधि महंगे पोशाक पहनते हैं. लग्जरी गाड़ी की सवारी करते हैं. पहले के नेता मुख्यमंत्री बनने के बाद भी फटा कुर्ता पहनते थे. मुख्यमंत्री के लिए कुर्ता फंड के माध्यम से चंदा जुटाया जाता था. आज विधायक का टिकट करोड़ों में बिक रहा. पैसे देकर भी टिकट के लिए मारामारी हो रही है.
यह खबर बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री की है, जब मुख्य मंत्री कर्पूरी ठाकुर के लिए चंद्र शेखर ने ‘‘कुर्ता फंड’’ जुटाया था. स्व. कर्पूरी ठाकुर के बेहद करीबी और बिहार के वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री सुरेंद्र किशोर उन दिनों की याद ताजा करते हैं. उन्होंने अपने फेसबुक पर लिखा है, सन 1977 में कर्पूरी ठाकुर के मुख्य मंत्री बनने के बाद की एक रोचक कहानी बताता हूं.जयप्रकाश नारायण के पटना स्थित आवास पर जेपी का जन्म दिन मनाया जा रहा था। उस अवसर पर देश भर के जनता पार्टी के बड़े -बड़े नेतागण जुटे थे। चंद्रशेखर,नानाजी देशमुख और राम कृष्ण हेगडे आदि आदि। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर भी वहां पहुंचे थे. उनका कुर्ता थोड़ा फटा हुआ था। चप्पल की स्थिति भी ठीक नहीं थी, दाढ़ी बढ़ी हुई थी।बाल बिखरे हुए थे क्योंकि कंघी शायद ही वे फेरते थे।धोती थोड़ा ऊपर करके कर्पूरी जी पहनते थे। यानी, देहाती दुनिया के सच्चे प्रतिनिधि थे. जेपी के यहां मौजूद एक नेता ने कहा कि ‘‘भाई, किसी मुख्यमंत्री के गुजारे के लिए न्यूनत्तम कितनी तनख्वाह मिलनी चाहिए ? वह तनख्वाह कर्पूरी जी को मिल रही है या नहीं ?’’
पद्मश्री सुरेन्द्र किशोर आगे लिखते हैं, इस टिप्पणी के बाद जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष चंद्र शेखर उठ खडे़ हुए। वे नाटकीय ढंग से अपने कुर्ते के अगले हिस्से के दो छोरों को अपने दोनों हाथों से पकड़कर खड़े हो गये। वे वहां मौजूद नेताओं के सामने बारी -बारी से जा -जाकर कहने लगे, ‘‘आपलोग कर्पूरी जी के ‘‘कुर्ता फंड’’ में चंदा दीजिए।’’ चंदा मिलने लगा। कुछ सौ रुपये तुरंत एकत्र हो गये। उन रुपयों को चंद्र शेखर जी ने कर्पूरी जी के पास जाकर उन्हें समर्पित कर दिया। उनसे आग्रह किया कि आप इन पैसों से कुर्ता ही बनवाइएगा। कोई और काम मत कीजिएगा। कर्पूरी जी ने मुस्कराते हुए उसे स्वीकार कर लिया और कहा कि ‘‘इसे मैं मुख्यमंत्री रिलीफ फंड में जमा करा दूंगा।’’
सुरेन्द्र किशोर कहते हैं, यह खबर पहली बार नर्मदेश्वर सिन्हा ने दी थी। उनके अखबार सर्चलाइट में वह बाक्स में छपी थी। मैंने उस खबर के आधार पर नई दुनिया में एक रपट लिखी थी।पर,मैं देख-पढ़ रहा हूं कि कुछ लोग इस खबर को तोड़ मरोड़ कर छापते और बताते रहे हैं।