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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Mon, 13 Oct 2025 01:34:19 PM IST
बिहार चुनाव 2025 - फ़ोटो GOOGLE
Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) में सीट बंटवारे को लेकर मचा घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा। बीते दिन भाजपा और जदयू के बीच आखिरकार फार्मूले पर सहमति बनी, जिसके तहत दोनों दल 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। वहीं छोटे सहयोगी दलों लोजपा (रामविलास), रालएम (उपेंद्र कुशवाहा) और हम (जीतन राम मांझी) को क्रमशः 29, 6 और 6 सीटें दी गई हैं। इस बंटवारे के बाद जहां भाजपा और जदयू ने इसे “संतुलित साझेदारी” बताया, वहीं छोटे सहयोगी दलों के भीतर नाराजगी की लहर उठने लगी है।
सबसे ज्यादा असंतोष की झलक उपेंद्र कुशवाहा के तेवरों में देखने को मिली। जनता दल (यूनाइटेड) छोड़कर अपनी नई पार्टी राष्ट्रीय लोक जनशक्ति मंच (रालएम) बनाने वाले कुशवाहा ने इस बार भी एनडीए का हिस्सा बने रहने का फैसला किया, लेकिन सीट बंटवारे के बाद उनके अंदर की पीड़ा सामने आ गई। सूत्रों के मुताबिक, कुशवाहा को उम्मीद थी कि उन्हें कम से कम 10 से 12 सीटें मिलेंगी, क्योंकि उनकी पार्टी का प्रभाव कई पूर्वी जिलों जैसे नालंदा, जहानाबाद, और औरंगाबाद में माना जाता है। लेकिन उन्हें सिर्फ 6 सीटों पर संतोष करना पड़ा।
सीट बंटवारे के बाद कुशवाहा ने पहले तो मीडिया के सामने संयम दिखाते हुए कहा कि वे गठबंधन धर्म निभाएंगे, लेकिन रात होते-होते उनका दर्द सोशल मीडिया पर छलक पड़ा। उन्होंने अपने एक्स (ट्विटर) पोस्ट में लिखा
“आज बादलों ने फिर साजिश की,
जहां मेरा घर था वहीं बारिश की।
अगर फलक को जिद है बिजलियां गिराने की,
तो हमें भी जिद है वहीं पर आशियां बसाने की।”
यह शायराना अंदाज भले ही भावनात्मक लगा हो, लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसे एनडीए के भीतर उभरते असंतोष का संकेत माना जा रहा है। इस पोस्ट के बाद चर्चाएं तेज हो गईं कि उपेंद्र कुशवाहा कहीं फिर से गठबंधन से दूरी तो नहीं बना लेंगे। उनके करीबी सूत्रों के अनुसार, पार्टी कार्यकर्ता भी इस फैसले से निराश हैं और कई जिलों में नाराजगी खुलकर सामने आ रही है। कुशवाहा ने अपने कार्यकर्ताओं के नाम एक पोस्ट में लिखा “मुझे पता है कि आप सब खुश नहीं होंगे, कई घरों में आज खाना तक नहीं बना होगा। लेकिन गठबंधन की मजबूरी में मुझे यह फैसला लेना पड़ा। अब आप खुद तय करें कि मेरा निर्णय सही है या गलत।”
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि कुशवाहा का यह रुख आने वाले दिनों में एनडीए के लिए चुनौती बन सकता है। उनके समर्थक मुख्य रूप से ओबीसी वर्ग से आते हैं, जो बिहार में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। अगर यह वर्ग असंतुष्ट हुआ, तो इसका असर भाजपा-जदयू गठबंधन पर सीधा पड़ेगा। वहीं दूसरी ओर, कुशवाहा की नाराजगी ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि “बड़ा भाई–छोटा भाई” वाला पुराना समीकरण खत्म भले हो गया हो, लेकिन समान हिस्सेदारी की नई कहानी सबको खुश नहीं कर पाई है।
भाजपा फिलहाल मामले को संभालने की कोशिश में जुटी है। पार्टी का मानना है कि चुनाव के दौरान सभी दलों की ताकत एकजुट होकर सामने आएगी। लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षक चेतावनी दे रहे हैं कि अगर उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेता अंदर से असंतुष्ट रहे, तो चुनावी मैदान में यह असंतोष बगावत में भी बदल सकता है।
कुल मिलाकर, बिहार एनडीए में सीट बंटवारे का यह अध्याय जहां एक ओर गठबंधन की एकता की तस्वीर पेश करता है, वहीं दूसरी ओर अंदरूनी खींचतान को भी उजागर करता है। उपेंद्र कुशवाहा का दर्द इस बात का संकेत है कि सब कुछ अभी शांत नहीं है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि एनडीए इस असंतोष को कैसे शांत करता है, क्योंकि बिहार की राजनीति में एक छोटी सी दरार भी कभी-कभी सत्ता का समीकरण बदल देती है।