1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sun, 23 Nov 2025 10:16:54 AM IST
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Bihar Politics : बिहार की राजनीति में चमत्कारों की कोई कमी नहीं, लेकिन नेताजी का ताज़ा कारनामा तो ऐसा था कि सुनकर अनुभवी पत्रकार भी चाय में पत्ती डालना भूल जाएं। कहानी शुरू होती है राजधानी के उस आलीशान बंगले से, जहां नेताजी अपने पसंदीदा कुर्सी पर बैठकर राजनीतिक दांवपेंच का शतरंज बिछाते हैं। आज माहौल कुछ अलग था क्योंकि बात किसी चुनाव की नहीं, बल्कि “अपने खास” को मंत्री बनवाने की थी।
दरअसल, पार्टी के कोटे से एक व्यक्ति को मंत्री बनाया जाना था। बाहर दुनिया को यह एक सामान्य प्रक्रिया लग रही थी, पर अंदर की राजनीति में यह उतना ही पेचीदा था जितना पराठे में छुपा जीरा ढूंढ निकालना। शपथ ग्रहण में अब कुछ ही घंटे बचे थे, और नेताजी ने अचानक पार्टी की कोर कमेटी की बैठक बुला डाली—वो भी ‘आपात’ वाली। कोर कमेटी के सदस्य हड़बड़ाकर पहुंचे। किसी ने धोती ठीक की, किसी ने कुर्ता। लेकिन नेताजी ने आते ही सबको शांत कर दिया और आदेश के स्वर में बोले—“पहले सब लोग माई किरीया खाइए… आज जो भी फैसला होगा, अगले 16 घंटे तक बाहर टस से मस नहीं होना चाहिए।”
सदस्यों ने एक-दूसरे का मुंह देखा… फिर आसमान देखा… फिर मन ही मन ईश्वर को देखा—पर माई किरीया खानी पड़ी। आखिर नेताजी का आदेश था, और बिहार की राजनीति में नेताजी का आदेश उसी तरह माना जाता है जैसे परीक्षा में साइलेंस का आदेश। बैठक शुरू हुई। नेताजी ने शुरुआत में संगठन की मजबूती, जनता के विश्वास, लोकतंत्र की गरिमा—आदि-आदि पर वह सब बातें कीं जो आमतौर पर किसी काम की नहीं पर सुनने में बहुत गंभीर लगती हैं।
कोर कमेटी के सदस्य भी गंभीर बनकर सिर हिलाते रहे, जैसे हर शब्द में गंगा का जल घुला हो। फिर नेताजी ने अचानक अपना रौद्र रूप धारण किया—“देखिए… कल मंत्री वो बनेंगे।” बस, इतना कहना था कि कमरे की हवा बदल गई। टेबल पर रखी बिस्किट की प्लेट तक सन्न हो गई। सभी सदस्यों की आंखें ऐसे फटीं जैसे किसी ने बताया हो कि लालटेन से मोबाइल चार्ज हो सकता है।
किसी ने हिम्मत करके पूछा—“नेताजी… लेकिन वो कैसे? टिकट कटने के बाद तो उनका राजनीतिक भविष्य डूबती नाव बन गया था… और कई लोग तो दूसरे सदन जाने का सपना देखकर ही पंख लगा रहे थे।” नेताजी मुस्कुराए। वो वही मुस्कान थी जिसे देखकर विरोधी दलों में कंपकंपी छूट जाती है और साथियों में भ्रम कि अब हंसने की बारी है या रोने की।
“राजनीति,” नेताजी बोले, “संयोग नहीं, उपयोग का खेल है। जिधर हम देखते हैं, उधर रास्ता बनता है। बस आप सब लोग सहमति दे दीजिए… बाकी खेल—हो जाएगा।” “हो जाएगा” नेताजी का वह जुमला था जिसे सुनकर सदस्य समझ जाते थे कि अब माथे पर चिंता की रेखाएं बनानी ही बनानी हैं। लेकिन असली झटका अभी बाकी था।बैठक खत्म होते ही कमेटी के सदस्यों की शाम घिरने लगी। रात थी, लेकिन नींद का कहीं पता नहीं।
किसी के दिमाग में टिकट कटने का दर्द घूम रहा था, किसी को दूसरे सदन की आशा धुएं की तरह उड़ती दिख रही थी। जिसने कभी मंत्री बनने का सपना देखा था उसे लग रहा था कि सपना तोड़ने के लिए नेताजी ने ही हाथ बढ़ाया है।एक सदस्य तो अपने कमरे में टहलते-टहलते इतना परेशान हो गया कि उसने खुद से पूछा—“अगर यह साहब मंत्री बन गए, तो अब हम लोग क्या बनेंगे? प्रेस नोट?” दूसरे ने आह भरी—“सियासत भी क्या चीज़ है… कभी उम्मीदें ज्यादा होती हैं, कभी उम्मीदार।”
तीसरे को तो ऐसा लगा जैसे उसके राजनीतिक भविष्य पर किसी ने विराम चिह्न लगा दिया हो। लेकिन नेताजी का जादू चलता है, और चलता ही है। अगले ही दिन शपथ ग्रहण में वही ‘खास’ व्यक्ति चमकती मुस्कान के साथ मंत्री पद की शपथ ले रहा था। कैमरों की फ्लैश ऐसे चमक रही थी जैसे उसकी कुर्ते में सोलर पैनल लगा हो।
इधर कोर कमेटी के सदस्य 16 घंटे पूरे होने का इंतजार करते रहे ताकि किसी से अपनी दुखभरी राजनीतिक कविता सुना सकें। लेकिन मौका ही नहीं मिला—क्योंकि अब टीवी स्क्रीन पर उनकी पार्टी का नया मंत्री छाया हुआ था। एक सदस्य ने ताना मारा—“देखिए, नेताजी का चमत्कार हो गया।” दूसरे ने जोड़ा—“हाँ, हमारी उम्मीदें हो गईं।”और तीसरे ने गहरी सांस लेकर कहा—“बिहार की राजनीति में नेताजी नहीं बनते… नेताजी किए जाते हैं।”इस तरह, नेताजी ने फिर साबित कर दिया कि राजनीति में ‘योग्यता’ से ज्यादा जरूरी है योग्यता तय करने वाला। बाकी सदस्य अब भी बैठकर सोच रहे हैं—“अगली बार माई किरीया खाने से पहले मेन्यू पूछ लेना था…”