Bihar Election 2025 : बिना पार्टी में शामिल किए बाहुबली नेता जी को मिल गया सिंबल,कैंडिडेट लिस्ट में नाम भी शामिल;JDU में यह क्या हो रहा

बिहार की सत्तारूढ़ पार्टी जेडीयू की पहली उम्मीदवार सूची जारी होते ही राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। पार्टी ने ऐसे बाहुबली नेता को टिकट दिया है जो अभी तक जेडीयू के प्राथमिक सदस्य भी नहीं हैं। इससे जेडीयू की पारदर्शिता और अनुशासन पर सवाल उठ रहे हैं।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Wed, 15 Oct 2025 01:25:50 PM IST

Bihar Election 2025 : बिना पार्टी में शामिल किए बाहुबली नेता जी को मिल गया सिंबल,कैंडिडेट लिस्ट में नाम भी शामिल;JDU में यह क्या हो रहा

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Bihar Election 2025 : बिहार की सत्तारूढ़ पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) यानी जेडीयू ने जैसे ही अपनी पहली उम्मीदवारों की सूची जारी की, राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई। चर्चा का केंद्र बने उस बाहुबली नेता, जिन्हें इस बार जेडीयू ने टिकट देकर अपना उम्मीदवार बना दिया है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि वे अभी तक पार्टी के प्राथमिक सदस्य (प्राइमरी मेंबर) भी नहीं हैं। यह मामला अब सिर्फ टिकट बंटवारे का नहीं रहा, बल्कि पार्टी की कार्यप्रणाली और अनुशासन पर भी सवाल उठने लगे हैं।


दरअसल, यह वही नेता हैं जिन्होंने पिछली विधानसभा चुनाव में राजद (राष्ट्रीय जनता दल) के टिकट पर मैदान में उतरकर जीत हासिल की थी। तब उनके हाथ में लालटेन का सिंबल था और इलाके में उनका प्रभाव इतना था कि विरोधी उम्मीदवारों को कोई मौका नहीं मिला। मगर, चुनाव जीतने के कुछ समय बाद ही उन पर एक गंभीर कानूनी मामला दर्ज हुआ, जिसके चलते उन्हें जेल जाना पड़ा। उनके जेल जाने के बाद सीट रिक्त हुई और वहां उपचुनाव हुआ।


उपचुनाव में उनकी पत्नी ने उसी सीट से राजद के टिकट पर चुनाव लड़ा और अपने पति की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए जीत हासिल कर ली। दिलचस्प बात यह थी कि इस सीट पर पहली बार भाजपा ने भी उम्मीदवार उतारा था, लेकिन जनता ने बाहुबली नेता की पत्नी को ही अपना प्रतिनिधि चुना। कहा जाता है कि इलाके में उनके पति की “छवि और पकड़” इतनी मजबूत थी कि पत्नी को केवल नाम भर का प्रचार करना पड़ा, बाकी सारा माहौल समर्थकों ने खुद ही बना दिया।


बाद में जब बिहार में सत्ता परिवर्तन हुआ और जेडीयू-भाजपा गठबंधन की सरकार बनी, तो इस बाहुबली परिवार ने राजनीतिक रणनीति के तहत राजद से नाता तोड़ लिया और जेडीयू के साथ आ गए। यही से नई कहानी शुरू हुई। पत्नी ने खुद को जेडीयू के समर्थन में खड़ा किया और लोकसभा चुनाव के दौरान जेडीयू के एक “बड़े नेता” के पक्ष में पूरे दमखम से प्रचार किया। इस बीच, जेल में बंद बाहुबली नेता को भी परोल पर रिहाई मिली और उन्होंने “भूमि विवाद के निपटारे” का बहाना बनाकर इलाके में खूब सक्रियता दिखाई।


स्थानीय सूत्रों के मुताबिक, परोल पर बाहर आने के बाद वे लगातार अपने पुराने समर्थकों से मिलते रहे और जेडीयू के पक्ष में “फील्डिंग” जमाते रहे। लेकिन नतीजा यह रहा कि जिस लोकसभा क्षेत्र में उन्होंने अपनी ताकत दिखाई, वहां भी जेडीयू का प्रदर्शन बहुत बेहतर नहीं रहा। इसके बावजूद, उनका प्रभाव और संपर्क क्षेत्रीय राजनीति में बरकरार रहा।


कुछ महीने पहले जब वे पूरी तरह जेल से बाहर आए, तो उन्होंने खुले मंच से ऐलान कर दिया कि “इस बार चुनाव मैं खुद लड़ूंगा, पत्नी को अब राजनीति से आराम चाहिए।” इतना ही नहीं, कई मौकों पर उन्होंने अपनी पत्नी की कार्यशैली पर सवाल भी उठाए और कहा कि “वह राजनीति के लिए बनी ही नहीं हैं।” उनके इस बयान के बाद यह लगभग तय माना जाने लगा कि वे अपनी पुरानी सीट से फिर से मैदान में उतरेंगे मगर किस पार्टी से, यह साफ नहीं था।


आखिरकार, जब जेडीयू ने अपनी उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की, तो उसी बाहुबली नेता का नाम उसमें शामिल था। लेकिन अब पार्टी के भीतर और बाहर यह चर्चा जोर पकड़ चुकी है कि जब तक उन्हें आधिकारिक तौर पर जेडीयू में शामिल नहीं किया गया है, तब तक उन्हें पार्टी का सिंबल कैसे दे दिया गया? पार्टी की सदस्यता प्रक्रिया स्पष्ट रूप से बताती है कि किसी को उम्मीदवार घोषित करने से पहले उसे पार्टी की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण करनी होती है।


राजनीतिक विश्लेषक इसे “व्यवहारिक राजनीति” और “व्यक्तिगत प्रभाव” का परिणाम बता रहे हैं। उनका कहना है कि जेडीयू ने इस नेता की पकड़ और जनाधार को ध्यान में रखते हुए औपचारिक प्रक्रिया को दरकिनार कर दिया। हालांकि, इससे पार्टी की छवि और अनुशासन पर सवाल उठना लाज़मी है।


पार्टी के अंदर के कुछ वरिष्ठ कार्यकर्ता भी नाराज़ बताए जा रहे हैं। उनका कहना है कि “हम सालों से जेडीयू के साथ हैं, फिर भी टिकट नहीं मिला, जबकि एक ऐसा व्यक्ति जिसे अब तक सदस्यता भी नहीं दी गई, उसे सीधे उम्मीदवार बना दिया गया।”


इस पूरे प्रकरण ने बिहार की राजनीति में नया विवाद खड़ा कर दिया है। एक तरफ जेडीयू “साफ-सुथरी राजनीति” और “नीतिश कुमार के सुशासन” की बात करती है, वहीं दूसरी ओर, ऐसे उम्मीदवार को टिकट देना उसकी पारदर्शिता पर सवाल उठाता है। आने वाले दिनों में यह मामला पार्टी के लिए अंदरूनी असंतोष का कारण भी बन सकता है।


फिलहाल, बाहुबली नेता के समर्थक जश्न मना रहे हैं, जबकि विरोधी इस फैसले को “जेडीयू का दोहरा चरित्र” बता रहे हैं। जनता के बीच यह चर्चा जोरों पर है — “क्या बिहार की राजनीति में वफादारी से ज्यादा ताकत और प्रभाव मायने रखता है?” समय इसका जवाब देगा, लेकिन एक बात साफ है — जेडीयू की इस लिस्ट ने चुनाव से पहले ही राज्य के राजनीतिक माहौल को और गर्म कर दिया है।


पटना से तेजप्रताप गर्ग की रिपोर्ट