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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sat, 01 Nov 2025 10:55:04 AM IST
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Mokama Murder : बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मोकामा में हुए बहुचर्चित दुलारचंद यादव हत्याकांड ने नया मोड़ ले लिया है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, दुलारचंद यादव की मौत गोली लगने से नहीं हुई, बल्कि सीने पर गाड़ी चढ़ने के कारण उनके फेफड़े फट गए और हड्डी टूटने के कारण हुई। यह खुलासा पुलिस जांच और परिवार के आरोपों के बीच नए सवाल खड़े कर रहा है और पूरे मामले में एक नया आयाम जोड़ रहा है।
मोकामा विधानसभा क्षेत्र में यह घटना जेडीयू उम्मीदवार अनंत सिंह और जन सुराज प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी के समर्थकों के बीच हुई झड़प के दौरान हुई थी। शुरुआती रिपोर्ट और एफआईआर में दुलारचंद यादव की हत्या को गोली लगने से जोड़ा गया था। परिजनों ने आरोप लगाया था कि उनकी हत्या जानबूझकर की गई थी, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने इस धारणा को पूरी तरह से चुनौती दी है। रिपोर्ट में साफ कहा गया कि उनके सीने पर गाड़ी चढ़ने से हड्डी टूट गई और फेफड़े फट गए, जिससे उनकी मौत हुई।
मेडिकल टीम ने शुक्रवार को बाढ़ में मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में करीब दो घंटे तक पोस्टमार्टम किया। तीन डॉक्टरों की टीम ने घटना की निष्पक्षता को सुनिश्चित करने के लिए हर पहलू का गहन अध्ययन किया। पोस्टमार्टम की यह रिपोर्ट न केवल दुलारचंद यादव के परिवार के लिए बल्कि जांच में लगे अधिकारियों के लिए भी बड़ी चुनौती साबित हुई है। अब यह स्पष्ट हो गया है कि गोली केवल बाहरी चोट थी और मौत का कारण नहीं थी।
इस खुलासे के बाद कई महत्वपूर्ण सवाल उठ रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि पुलिस ने अपनी प्रारंभिक जांच में दुलारचंद की मौत को संदेहास्पद क्यों करार दिया जबकि उनके पैर में गोली लगी थी। क्या पुलिस ने काफिले और घटनास्थल की पर्याप्त जांच नहीं की? रिपोर्ट के अनुसार, दुलारचंद के सीने की हड्डी टूटना और फेफड़े फटना सीधे तौर पर वाहन के दबाव से हुआ था। इस तथ्य ने यह भी सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या पुलिस को पहले से ही मोकामा में चल रहे तनाव के बारे में पता था।
मोकामा में अनंत सिंह और दुलारचंद के बीच लंबे समय से राजनीतिक तनाव और प्रतिद्वंद्विता चली आ रही थी। ऐसे माहौल में काफिले में किसी भी तरह की चेकिंग और सुरक्षा की कमी गंभीर सवाल पैदा करती है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि घटना के समय काफिले में लोग हथियार लेकर भी मौजूद थे। इस स्थिति में पुलिस सुरक्षा और निगरानी की भूमिका पर सवाल उठना स्वाभाविक है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की राजनीतिक झड़पों में सुरक्षा की गंभीर लापरवाही गंभीर परिणामों का कारण बन सकती है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने यह भी साबित कर दिया है कि हत्या की प्राथमिक धारणा और वास्तविकता में अंतर था। यह खुलासा न केवल राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना है बल्कि पुलिस जांच और न्यायिक प्रक्रिया में भी महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि पुलिस इस नए तथ्य को ध्यान में रखते हुए अपनी जांच की दिशा किस प्रकार बदलती है। दुलारचंद यादव के परिवार ने पहले ही हत्या के आरोप में एफआईआर दर्ज करवाई थी। अब सवाल यह है कि क्या एफआईआर में संशोधन किया जाएगा या मामले की पूरी जांच नए सिरे से शुरू होगी। राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि यह घटना मोकामा विधानसभा सीट पर चुनावी माहौल को और अधिक गर्म कर सकती है।
इस पूरे मामले ने यह भी उजागर किया है कि राजनीतिक हिंसा और सुरक्षा की कमी किस प्रकार एक सामान्य व्यक्ति की जान को खतरे में डाल सकती है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि यह मौत राजनीतिक रंजिश का प्रत्यक्ष परिणाम थी, लेकिन गोली नहीं, बल्कि वाहन का दबाव मौत का कारण बनी।
मोकामा के लोग अब यह जानने के लिए बेताब हैं कि आखिरकार इस घटना के लिए जिम्मेदार कौन है और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे। पुलिस और प्रशासन पर जनता का भरोसा सवालों के घेरे में है। यह मामला सिर्फ राजनीतिक विवाद नहीं, बल्कि सुरक्षा और प्रशासनिक कार्यप्रणाली की परीक्षा भी बन गया है।
इस पूरी घटना ने मोकामा विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक और सामाजिक दोनों ही स्तर पर हलचल मचा दी है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने मामला सुलझाने के बजाय और अधिक जटिल बना दिया है। अब देखना यह है कि जांच किस दिशा में बढ़ती है और दोषियों को सजा दिलाने के लिए प्रशासन कितनी प्रभावी कार्रवाई करता है।