Bihar Election 2025 : बिहार चुनाव 2025 में RJD में भूचाल: करारी हार के बाद तेजस्वी पर सवाल, परिवार और पार्टी में बढ़ी टूट

Bihar Election 2025 : बिहार चुनाव 2025 में RJD को मिली करारी हार ने पार्टी और लालू परिवार दोनों में गहरा संकट खड़ा कर दिया है। नेतृत्व पर सवाल, टूटता परिवार और बिखरता वोट बैंक तेजस्वी की चुनौती बढ़ा रहे हैं।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sun, 16 Nov 2025 10:08:40 AM IST

Bihar Election 2025 : बिहार चुनाव 2025 में RJD में भूचाल: करारी हार के बाद तेजस्वी पर सवाल, परिवार और पार्टी में बढ़ी टूट

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Bihar Election 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) को मिली करारी हार ने पार्टी के राजनीतिक भविष्य पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। महागठबंधन की यह हार सिर्फ वोटों और सीटों तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसके झटके से लालू प्रसाद यादव के परिवार से लेकर पूरे संगठन में जबरदस्त उथल-पुथल मच गई है। तेजस्वी यादव, जिन्हें महागठबंधन ने सीएम फेस बनाकर चुनाव लड़ा, अब इस हार के सबसे बड़े जिम्मेदार के रूप में घिरते दिख रहे हैं। गठबंधन के सहयोगी दलों ने भी दबी जुबान में संकेत दे दिया है कि ‘तेजस्वी को ज़बरदस्ती आगे लाने’ की रणनीति चुनावी पराजय का प्रमुख कारण बनी।


चुनावी नतीजों के अगले ही दिन राजद के भीतर बगावत की आहटें तेज हो गईं। सहयोगी पार्टियों से लेकर राजद के वरिष्ठ नेताओं तक ने यह सवाल उठाना शुरू कर दिया कि क्या तेजस्वी यादव नेतृत्व की जिम्मेदारी निभाने में सक्षम हैं? हार के तुरंत बाद महागठबंधन के कई नेताओं ने खुलकर कहा कि तेजस्वी के नेतृत्व पर दोबारा ‘नया विमर्श’ होना ही चाहिए।


परिवार में भी उभरी दरारें

राजद की असली मुश्किल पार्टी कार्यालय से अधिक लालू परिवार के भीतर खड़ी हो गई है। तेजस्वी की बहन और लोकसभा चुनावों में उनकी सबसे मजबूत समर्थक रहीं रोहिणी आचार्या ने इस बार चुनावी नतीजों के बाद पार्टी और परिवार दोनों से दूरी बना ली। उनके सोशल मीडिया पोस्ट—“मैं पार्टी और परिवार दोनों से नाता तोड़ रही हूं… सब दोष मेरा है”—ने संकेत दे दिया कि परिवार में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा। उधर बड़ी बहन मीसा भारती से तेजस्वी की अनबन की खबरों ने भी परिवार के भीतर बढ़ते तनाव को और स्पष्ट कर दिया है।


तेज प्रताप यादव की नाराज़गी भी अब किसी से छिपी नहीं रही। सोशल मीडिया पर गर्लफ्रेंड की तस्वीर विवाद के बाद तेज प्रताप को पार्टी और परिवार दोनों से अलग-थलग कर दिया गया। इसके जवाब में उन्होंने जनशक्ति जनता दल बनाकर 45 सीटों पर चुनाव लड़ा। भले उनकी पार्टी कोई सीट न जीत पाई, लेकिन तेज प्रताप ने महुआ सीट पर राजद को हराने में अहम भूमिका निभाई। उनका तंज—“जो भाई का नहीं हुआ, वो जनता का क्या होगा”—ने परिवारिक टकराव को और गहरा कर दिया है।


सलाहकारों और रणनीति टीम पर भी निशाना

चुनावी हार के बाद राजद के पुराने और निकाले गए नेता भी सामने आ गए हैं। महिला प्रकोष्ठ की पूर्व अध्यक्ष रितु जायसवाल ने सोशल मीडिया पर तीखा हमला करते हुए लिखा कि “खुद को चाणक्य समझने की भूल में जीती हुई सीटें गंवाई जाती हैं।” उनकी यह टिप्पणी सीधे तौर पर तेजस्वी के सलाहकारों, खासकर संजय यादव और उनके करीबी रमीज़, पर हमला मानी जा रही है। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि रणनीति बनाने की जिम्मेदारी गलत हाथों में चली गई और इसका सीधा नुकसान चुनावी नतीजों में देखने को मिला।


जातीय समीकरण भी बिगड़ा

राजद की राजनीति का आधार माने जाने वाला M-Y (मुस्लिम–यादव) समीकरण भी इस बार बुरी तरह बिखर गया। पार्टी के 54 यादव उम्मीदवारों में से सिर्फ 11 सीटें जीत पाईं। दूसरी ओर NDA ने 15 यादव उम्मीदवारों को विधानसभा में भेजा। मुस्लिम वोट भी इस बार राजद से दूर जाते दिखे। राजद के 19 मुस्लिम उम्मीदवारों में से केवल 3 जीते, जबकि AIMIM ने सीमांचल की 5 मुस्लिम बहुल सीटें अपने नाम कर लीं। विश्लेषकों का मानना है कि मुस्लिम मतदाता अब यह मानने लगे हैं कि तेजस्वी यादव BJP को रोकने में सक्षम नहीं हैं।


पार्टी-संगठन का मनोबल टूटा

लगातार दो चुनावी हार ने तेजस्वी यादव की नेतृत्व क्षमता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। राजद के अंदर यह चर्चा तेज हो गई है कि अगर समय रहते पार्टी को नए सिरे से नहीं खड़ा किया गया, तो आने वाले चुनावों में स्थिति और खराब हो सकती है। संगठन का मनोबल गिरा है, और कई नेताओं में यह असंतोष है कि चुनाव से पहले पार्टी के भीतर संवाद कम हो गया था और फैसले सीमित लोगों तक सिमटकर रह गए थे।


तेजस्वी के सामने अब सबसे कठिन चुनौती

तेजस्वी यादव अब अपनी राजनीतिक करियर की सबसे कठिन परीक्षा से गुजर रहे हैं। एक तरफ टूटता परिवार है, तो दूसरी तरफ बिखरता संगठन। उन्हें पहले परिवार को जोड़ना होगा, पार्टी को एकजुट करना होगा और उसके बाद ही बीजेपी जैसी मजबूत राजनीतिक ताकत से मुकाबला करने की रणनीति पर काम करना होगा। सवाल यह है कि क्या वह इस दोहरी चुनौती को संभाल पाएंगे?चुनावी समीकरणों से लेकर परिवारिक समीकरणों तक, हर मोर्चे पर तेजस्वी दबाव में हैं और बिहार की राजनीति अब उनके अगले कदम पर टिकी हुई है।