1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sat, 15 Nov 2025 12:05:43 PM IST
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Bihar politics : लोकसभा चुनाव और बिहार की राजनीति के बदलते समीकरणों के बीच भारतीय जनता पार्टी ने अपने वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आर.के. सिंह के खिलाफ कठोर कदम उठाया है। पार्टी ने उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में 6 साल के लिए निलंबित कर दिया है। यह कार्रवाई राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बनी हुई है, क्योंकि आर.के. सिंह लंबे समय तक पार्टी के प्रमुख चेहरों में शामिल रहे हैं और संघ व संगठन में उनकी गहरी पकड़ मानी जाती रही है।
पार्टी लाइन से अलग चलने पर कार्रवाई
सूत्रों के अनुसार, पिछले कुछ महीनों से आर.के. सिंह लगातार पार्टी लाइन से हटकर बयान दे रहे थे। कई मौकों पर उन्होंने न सिर्फ संगठन की नीतियों पर सवाल खड़े किए, बल्कि चुनावी रणनीतियों को लेकर भी असहमति जताई। पार्टी ने पहले उन्हें समझाने की कोशिश की, लेकिन कथित तौर पर उन्होंने अपनी गतिविधियों में सुधार नहीं किया। इसी के बाद कार्रवाई का निर्णय लिया गया।
बीजेपी के प्रदेश कार्यालय से जारी पत्र में स्पष्ट कहा गया है कि पूर्व मंत्री की गतिविधियाँ “पार्टी की छवि को नुकसान पहुँचाने वाली और अनुशासनहीनता की श्रेणी में आती हैं।” इसी आधार पर उन्हें तत्काल प्रभाव से पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया गया है और आगामी 6 वर्षों तक पार्टी में किसी भी जिम्मेदारी या पद पर उनकी बहाली नहीं होगी।
आर.के. सिंह का राजनीतिक सफर और योगदान
आर.के. सिंह, जो बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण चेहरा रहे हैं, पहले आइएएस अधिकारी रहे और फिर राजनीति में आए। बीजेपी ने उन्हें प्रतिभाशाली और सख्त प्रशासक की छवि के तौर पर पेश किया। वे केंद्र में ऊर्जा राज्य मंत्री और बाद में विद्युत मंत्री के रूप में भी काम कर चुके हैं। उनके कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण परियोजनाएँ आगे बढ़ीं, जिनमें बिजली उत्पादन, वितरण सुधार और ग्रामीण विद्युतीकरण की योजनाएँ शामिल रहीं।
हालाँकि पिछले कुछ समय से वे पार्टी नेतृत्व से असंतुष्ट बताए जा रहे थे। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि टिकट वितरण, स्थानीय समीकरण और पार्टी की रणनीति को लेकर उनके मतभेद खुलकर सामने आने लगे थे। कई बार उन्होंने सार्वजनिक मंचों पर ऐसे बयान भी दिए, जो पार्टी के रुख से मेल नहीं खाते थे।
बीजेपी की अनुशासन नीति एक बार फिर सख्त
बीते वर्षों में बीजेपी ने लगातार यह संदेश दिया है कि पार्टी से ऊपर कोई नहीं है और अनुशासन ही संगठन की सबसे बड़ी ताकत है। इससे पहले भी कई नेताओं के खिलाफ इसी तरह की कार्रवाई की जा चुकी है। आर.के. सिंह पर कार्रवाई उसी नीति का हिस्सा बताई जा रही है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि “अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं की जाएगी, चाहे वह कितना ही बड़ा नेता क्यों न हो।”
राजनीति विश्लेषकों के अनुसार, बिहार में आगामी राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए बीजेपी कोई भी जोखिम उठाने के मूड में नहीं है। पार्टी चाहती है कि सभी नेता एकजुट होकर रणनीति पर अमल करें। ऐसे में किसी भी प्रकार की बगावती गतिविधि को तत्काल रोकना संगठन के हित में माना जा रहा है।
आगे की राजनीति पर पड़ेगा असर
आर.के. सिंह के निलंबन का असर बिहार की राजनीति पर लक्षित रूप से दिखाई देगा। वे अपने क्षेत्र में मजबूत पकड़ रखते हैं और उनका प्रशासनिक अनुभव उन्हें अलग पहचान देता है। निलंबन के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या वे आगे किसी दूसरी राजनीतिक पार्टी में शामिल होंगे या स्वतंत्र रास्ता चुनेंगे। फिलहाल उनकी ओर से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है।
राजनीति विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दिनों में बिहार की सियासत में और हलचल देखने को मिल सकती है, क्योंकि निलंबन के बाद आर.के. सिंह अपनी प्रतिक्रिया जरूर देंगे। उनके समर्थक भी इस फैसले से नाराज बताए जा रहे हैं।