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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Thu, 18 Sep 2025 01:06:03 PM IST
जगद्गुरु रामभद्राचार्य - फ़ोटो GOOGLE
Swami Avimukteshwarananda statement:वृंदावन स्थित श्री राधा हित केलि कुंज आश्रम के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज का नाम पूरे देश में श्रद्धा और सम्मान से लिया जाता है। उनके भावपूर्ण प्रवचन न केवल हिंदू श्रद्धालुओं को, बल्कि अन्य धर्मों के अनुयायियों को भी आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। वे श्री राधा रानी के भजन-कीर्तन और नाम-स्मरण के माध्यम से भक्ति रस की धारा बहाते हैं।
हाल ही में सोशल मीडिया पर जगद्गुरु रामभद्राचार्य का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें उन्होंने प्रेमानंद महाराज को संस्कृत श्लोक सुनाने की चुनौती दी। इस बयान के बाद संत समाज में हलचल मच गई और कई प्रमुख संतों ने रामभद्राचार्य के इस रवैये पर आपत्ति जताई। उनका कहना था कि भक्तिभाव को भाषा के स्तर पर आंकना अनुचित है।
इसी विवाद के बीच स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने प्रेमानंद महाराज के पक्ष में उतरते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा,"प्रेमानंद महाराज को संस्कृत आने की आवश्यकता ही क्या है? वे तो दिनभर राधा-राधा नाम का स्मरण करते हैं। भगवत नाम ही सर्वोपरि है और 'राधा' स्वयं संस्कृत शब्द है।
उन्होंने आगे कहा, मैं जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी से पूछना चाहता हूं क्या राधा नाम संस्कृत में नहीं आता? मुझे तो लगता है कि अब उन्हें न सुनाई देता है, न दिखाई देता है। इस बयान के माध्यम से स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने यह स्पष्ट किया कि किसी संत के अध्यात्मिक योगदान को केवल विद्वत्ता की कसौटी पर नहीं कसा जा सकता।
विवाद यहीं नहीं रुका। कुछ दिन पहले एक कथा के दौरान बागेश्वर धाम सरकार के नाम से प्रसिद्ध धीरेंद्र शास्त्री ने स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को लेकर टिप्पणी की थी, "मैं उनका आदर करता हूं, भले ही वह हमें हर दो दिन में गाली बकते रहते हैं।"
इस पर पलटवार करते हुए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा,'बकना' शब्द का हिंदी में अर्थ है व्यर्थ में प्रलाप करना। यह शब्द सम्मान सूचक नहीं बल्कि अपमानजनक है। उन्होंने कटाक्ष करते हुए आगे कहाहै कि तुम्हारी यह मूर्खता नहीं है, धीरेंद्र शास्त्री। यह तुम्हारे गुरु की मूर्खता है, जिसने तुम्हारे जैसे चेला को जन्म दिया।
यह पूरा विवाद इस बात को उजागर करता है कि आज संत समाज में भी मतभेद सार्वजनिक मंचों पर आने लगे हैं। एक ओर जहाँ प्रेमानंद महाराज जैसे संत भक्ति को ही सर्वोपरि मानते हैं, वहीं कुछ संत ज्ञान और शास्त्रों की शुद्धता को प्राथमिकता देते हैं। सोशल मीडिया और टीवी चैनलों के बढ़ते प्रभाव ने इन वैचारिक मतभेदों को आम जनता के सामने ला खड़ा किया है। फिलहाल, इस पूरे घटनाक्रम पर श्री प्रेमानंद महाराज की ओर से कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। उनके अनुयायी और भक्तजन शांति और प्रेम का संदेश फैलाने की अपील कर रहे हैं।