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Sawan Last Monday: शिव ने लिया रौद्र रूप और बन गए ज्योतिर्लिंग, जानिए... नागेश्वर मंदिर की कहानी

Sawan Last Monday: सावन के आखिरी सोमवार पर जानिए नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का पौराणिक महत्व, शिव-पार्वती की उपासना की कथा और वहां तक पहुंचने का आसान मार्ग। द्वारका स्थित यह ज्योतिर्लिंग भक्तों के लिए आस्था और शक्ति का केंद्र है।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Mon, 04 Aug 2025 02:59:27 PM IST

Sawan Last Monday

सावन के अंतिम सोवारी - फ़ोटो GOOGLE

Sawan Last Monday: सावन का आखिरी सोमवार, 4 अगस्त यानी आज है। सावन के पूरे महीने में भक्तगण भगवान शिव की असीम श्रद्धा और भक्ति के साथ उनकी उपासना करते हैं। इस पवित्र माह में कई भक्त भगवान शिव के पूजन और दर्शन के लिए देश के प्रमुख ज्योतिर्लिंगों की यात्रा भी करते हैं। भारत में कुल 12 ज्योतिर्लिंग हैं, जो भगवान शिव के विभिन्न रूपों का प्रतीक माने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति इन ज्योतिर्लिंगों के नाम का जाप या ध्यान करता है, उसकी हर मनोकामना भगवान शिव पूरी करते हैं। इन 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महत्वपूर्ण ज्योतिर्लिंग है नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, जिसके बारे में हम आपको विस्तार से बता रहे हैं।


नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, जिसे नागनाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, गुजरात के द्वारका जिले के नागेश्वर गांव में स्थित है। यह 12 ज्योतिर्लिंगों में अंतिम यानी बारहवां ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यहाँ महादेव की पूजा शिवलिंग के रूप में की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने भी इस ज्योतिर्लिंग की पूजा की थी और इसका रुद्राभिषेक किया था। साथ ही इस मंदिर में माता पार्वती को नागेश्वरी के रूप में पूजित किया जाता है, जो इस स्थान की धार्मिक महत्ता को और भी बढ़ाता है।


शिवपुराण के श्रीकोटिरुद्र संहिता के अनुसार, प्राचीन काल में दारुक नाम का एक दानव था जिसकी पत्नी का नाम दारुका था। ये दोनों एक सुन्दर वन में रहते थे, जो पश्चिमी समुद्र के किनारे था। उस क्षेत्र के लोग इनके अत्याचारों से त्रस्त हो गए थे। वे सभी और्व ऋषि के पास जाकर अपनी व्यथा बताने लगे। ऋषि ने कहा कि जब दानव जीव-जंतुओं को क्षति पहुंचाते हैं और यज्ञों में बाधा डालते हैं तो उनकी मृत्यु निश्चित होती है। इस पर देवताओं और दानवों के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया। दानवों ने अपने वरदान का उपयोग करते हुए पूरे नगर को समुद्र में स्थापित कर दिया, जहाँ वे आराम से रहने लगे।


एक बार दारुका समुद्र से निकलकर पृथ्वी पर आई और एक नाव को देखा, जिसमें अनेक मनुष्य सवार थे। उसने सभी को बंदी बना लिया, जिनमें से एक वैश्य सुप्रिय भी था। सुप्रिय ने कैदखाने में रहते हुए भगवान शिव की आराधना शुरू की, जिसका असर अन्य कैदियों पर भी पड़ा। वे सभी शिव की पूजा करने लगे। यह दृश्य दानवों के सामने आने पर दारुक ने सुप्रिय से पूछा कि वह किसकी पूजा कर रहा है। सुप्रिय ने उत्तर न दिया और जब राक्षस उसे मारने को हुआ, तो उसने अपनी आँखें बंद कर भगवान शिव की प्रार्थना की। उसी समय भगवान शंकर प्रकट हुए और अपने पाशुपतास्त्र से दानवों का विनाश कर वन को दानवों से मुक्त कर दिया। इसके बाद यह स्थल धर्म का केंद्र बन गया जहाँ वैदिक धर्म के पालन वाले लोग रह सकें।


दारुक के मृत्यु के बाद उसकी पत्नी दारुका ने दुर्गाजी के पास अपने वंश की रक्षा हेतु प्रार्थना की। इस पर शिव और पार्वती वहां ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हुए। दुर्गाजी ने दारुका को वरदान दिया कि इस युग के अंत में इस स्थान पर दानवों का निवास होगा और दारुका उनका राज्य करेगी।


नागेश्वर ज्योतिर्लिंग तक पहुंचने के कई रास्ते हैं। हवाई मार्ग से आने वाले यात्री दिल्ली से गुजरात के जामनगर हवाई अड्डे तक उड़ान भर सकते हैं, जो इस मंदिर के सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है। जामनगर से टैक्सी या कैब लेकर आसानी से नागेश्वर मंदिर पहुंचा जा सकता है। रेल मार्ग से आने वालों के लिए द्वारका रेलवे स्टेशन सबसे नजदीकी स्टेशन है, जहां से टैक्सी या ऑटो रिक्शा द्वारा मंदिर तक जाना आसान है। सड़क मार्ग भी द्वारका से नागेश्वर मंदिर तक सुगम है, और पर्यटकों के लिए नियमित परिवहन सुविधा उपलब्ध है।


सावन के इस आखिरी सोमवार पर यहां आने वाले भक्त विशेष पूजा, जलाभिषेक और रुद्राभिषेक करते हैं। यह दिन भगवान शिव की कृपा पाने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह भक्तों के लिए आध्यात्मिक शांति, शक्ति और आशीर्वाद का केंद्र भी है। इसलिए सावन के अंतिम सोमवार पर यहां दर्शन कर भक्त अपनी श्रद्धा और भक्ति का अनुभव कर सकते हैं।