Supreme Court: आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा, नगर निगम की कार्यशैली पर उठाए सवाल

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट में आवारा कुत्तों को शेल्टर में रखने के आदेश पर बहस तेज हो गई है। सॉलिसिटर जनरल ने बच्चों की मौत और रेबीज के मामलों का हवाला देते हुए कार्रवाई की मांग की, वहीं कपिल सिब्बल और अन्य वकीलों ने आदेश पर रोक लगाने की अपील की।

1st Bihar Published by: FIRST BIHAR Updated Thu, 14 Aug 2025 12:28:35 PM IST

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Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट में देशभर में आवारा कुत्तों को सड़कों से हटाकर शेल्टर होम्स में रखने के आदेश पर बहस तेज हो गई है। इस आदेश के बाद समाज में पक्ष-विपक्ष में बहस छिड़ गई। कई लोग इसे जरूरी कदम मानते हैं, वहीं कईयों ने इसका विरोध किया है।


इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट में फिर से सुनवाई हुई, जहां सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट के समक्ष आवारा कुत्तों से उत्पन्न खतरों को गंभीरता से रखते हुए आंकड़ों और उदाहरणों के साथ अपनी बात रखी। सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट से कहा कि मैं एनिमल लवर हूं, लेकिन बच्चे मर रहे हैं। यह गंभीर मुद्दा है। उन्होंने बताया कि सिर्फ 2024 में कुत्तों के काटने के 37 लाख मामले दर्ज हुए, और रेबीज से 305 मौतें हुईं। WHO के मॉडल के अनुसार यह संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है।


उन्होंने यह भी कहा कि नसबंदी और टीकाकरण से रेबीज नहीं रुकता। बच्चे घरों से बाहर खेलने नहीं जा पा रहे। हर घर में कुत्ता रखना संभव नहीं है, और बाहर ये बच्चों को निशाना बनाते हैं। वीडियो इसका प्रमाण है। वहीं वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में आपत्ति जताते हुए कहा कि बिना नोटिस स्वतः संज्ञान लेकर ऐसा आदेश देना उचित नहीं है। कुत्तों को पकड़ने की कार्रवाई शुरू हो चुकी है, लेकिन शेल्टर की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। जहां हैं, वहां भी जगह कम है।


उन्होंने कोर्ट से आदेश पर रोक लगाने की मांग की और बताया कि वे प्रोजेक्ट काइंडनेस की तरफ से पेश हो रहे हैं। वहीं, अभिषेक मनु सिंघवी ने भी कहा कि जिस पैमाने पर समस्या का चित्रण किया जा रहा है, वैसी ढांचागत व्यवस्था देश में मौजूद नहीं है। उन्होंने SG मेहता पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए कहा कि संसद में दिए गए जवाबों में यह स्पष्ट है कि रेबीज से उतनी मौतें नहीं हुई हैं, जितना दावा किया जा रहा है। कुत्तों का काटना खतरनाक है, लेकिन डर का माहौल बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है।


जस्टिस नाथ ने दिल्ली सरकार से सवाल किया कि आपका क्या स्टैंड है? क्या ये नगर निगम की निष्क्रियता का परिणाम है? ये किसकी जिम्मेदारी है? कोर्ट ने कहा कि फिलहाल आदेश नहीं दिया जाएगा, बल्कि पहले स्थानीय अधिकारियों और याचिकाकर्ताओं से जवाब मांगा जाएगा। जस्टिस ने स्पष्ट कहा कि हर वह व्यक्ति जो यहां हस्तक्षेप दर्ज करा रहा है, उसे अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। अंत में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश फिलहाल सुरक्षित रख लिया है, और कहा है कि इस मामले के हर पहलू पर विचार किया जाएगा और अंतरिम आदेश जारी किया जाएगा।