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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Thu, 11 Sep 2025 09:32:16 AM IST
नेपाल की पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की - फ़ोटो GOOGLE
Nepal Political Crisis: नेपाल इस समय भीषण राजनीतिक और सामाजिक अशांति के दौर से गुजर रहा है। देशभर में विरोध-प्रदर्शनों का माहौल है और हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि पूरा देश मानो धुएं से घिर गया हो। ऐसे नाजुक समय में, नेपाल की पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की को अंतरिम सरकार का प्रमुख बनाए जाने का प्रस्ताव सामने आया है। यह प्रस्ताव हामी नेपाली नामक एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) की ओर से रखा गया, जिसे काठमांडू के मेयर बालेन शाह ने भी समर्थन दिया है।
सुशीला कार्की नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रही हैं। वर्ष 2017 में, उनके खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था। उन पर सरकार के कामकाज में दखल देने के आरोप लगे थे, जिसके चलते उन्हें निलंबित कर दिया गया था। हालांकि, कार्की ने इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट ने उनकी रिटायरमेंट से ठीक एक दिन पहले ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए उनके खिलाफ लाया गया महाभियोग रद्द कर दिया।
अब, इस घटनाक्रम के आठ साल बाद, राजनीति का पासा पूरी तरह पलट चुका है। जिस महिला को एक समय सत्ता के गलियारों से बाहर कर दिया गया था, आज वही महिला देश की अंतरिम प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में सबसे आगे है। यह घटनाक्रम नेपाल के लोकतांत्रिक इतिहास में एक बड़ा मोड़ माना जा रहा है।
सुशीला कार्की का जन्म 1955 में हुआ था। उन्होंने कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद न्यायिक सेवा में प्रवेश किया और एक लंबा, प्रतिष्ठित करियर बनाया। वे 2015 से 2017 तक नेपाल की सुप्रीम कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश रहीं। उनके कार्यकाल के दौरान उन्होंने लैंगिक समानता, न्यायिक सुधार और सशक्तिकरण जैसे अहम मुद्दों पर मजबूत फैसले लिए।
इस बीच, नेपाल में चल रहे Gen-Z मूवमेंट ने राजनीतिक हलचल और तेज कर दी है। युवा पीढ़ी के नेतृत्व में हो रहे प्रदर्शनों में अब तक 30 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 1033 से अधिक लोग घायल हुए हैं। इन प्रदर्शनों के दबाव में प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा। बताया जा रहा है कि Gen-Z आंदोलनकारियों ने भी हाल ही में सुशीला कार्की के नाम का समर्थन किया है, जिससे उनका नाम अंतरिम प्रधानमंत्री के लिए और भी प्रासंगिक हो गया है।
नेपाल के वर्तमान राजनीतिक संकट और युवा आंदोलन की पृष्ठभूमि में सुशीला कार्की की एंट्री न सिर्फ एक न्यायिक आइकन की वापसी है, बल्कि यह महिलाओं और लोकतंत्र के लिए भी एक नई उम्मीद बनकर उभरी है।