PATNA: बैनर-पोस्टर औऱ होर्डिंग से पटी राजधानी, हजारों गाड़ियों का काफिला, जगह-जगह पर फूलों की बरसात, कहीं ढोल-नगाड़े तो कहीं बैंड-बाजे पर बज रहा गाना-मेरा पिया घर आया. ये नजारा था शुक्रवार को पटना में जेडीयू के नव नियुक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह के स्वागत का. ललन सिंह के स्वागत में जेडीयू के दर्जनों नेताओं ने जिस तरह से ताकत झोंकी, वह एक अजूबा ही था. इससे पहले कभी नीतीश कुमार का भी स्वागत पटना में ऐसे नहीं हुआ होगा. इस तमाम शोर-शराबे के निपट जाने के बाद सियासी गलियारे में एक बड़ा सवाल उठ रहा है-क्या वाकई जेडीयू में नीतीश कुमार के अलावा एक दूसरा पावर सेंटर भी बन गया है. एक ललन सिंह नये पावर सेंटर बन गये हैं.
जेडीयू के अध्यक्ष के स्वागत का नायाब नजारा
1994 में नीतीश कुमार तत्कालीन जनता दल से अलग हुए थे. पहले जनता दल (जार्ज) बना, फिर समता पार्टी बनी औऱ उसके बाद जेडीयू. इस बीच पार्टी के कई अध्यक्ष बने. पहले जार्ज फर्नांडीस फिर शरद यादव. शऱद को हटा कर नीतीश ने खुद कमान संभाली औऱ इस साल की शुरूआत में आरसीपी सिंह को कमान सौंपी. अब ललन सिंह की बारी आयी है. लेकिन ललन सिंह के स्वागत में आज जो सियासी ड्रामा हुआ वह पहले कभी नहीं हुआ था. खुद नीतीश जब अध्यक्ष बन गये थे तब भी उनके स्वागत के नाम पर इतना शोर शराबा नहीं हुआ था.
ललन सिंह के स्वागत की होड़
31 जुलाई को दिल्ली में जेडीयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने के बाद ललन सिंह ने खुद जानकारी दी थी कि वे 6 अगस्त को पटना आय़ेंगे. इसके बाद जेडीयू नेताओं की एक बड़ी जमात में ललन सिंह के स्वागत में ताकत आजमाइश की जैसे होड मच गयी थी. 31 जुलाई से ही स्वागत की तैयारी शुरू कर दी गयी थी और आज जब ललन सिंह पटना पहुंचे तो ऐसा लगा मानो वे सबसे बड़ी जंग जीत कर पटना लौटे हैं.
जेडीयू नेताओं ने ललन सिंह के स्वागत की तैयारी ही ऐसी की थी. एयरपोर्ट पर उतरने के बाद जेडीयू दफ्तर तक ललन सिंह जिस रास्ते से जाने वाले थे उसका चप्पा-चप्पा बैनर-पोस्टर औऱ होर्डिंग से भरा पड़ा था. जेडीयू के उपाध्यक्ष औऱ विधान पार्षद संजय सिंह का पोस्टर सड़क के हर पोल पर चमक रहा था. नीतीश कुमार औऱ ललन सिंह की तस्वीर के ठीक नीचे. जेडीयू के विधान पार्षद रणविजय सिंह ने तो साउथ इंडियन तरीके से आदमकद कटआउट ही लगा दिये थे.
विधान पार्षद राधाचरण साह, विधायक राजकुमार सिंह, छोटू सिंह, संजय प्रसाद, नन्हकु पांडेय जैसे सैकड़ो नेताओं के होर्डिंग एक दूसरे को मात देने की होड़ लगाते नजर आ रहे थे. फर्स्ट बिहार ने होर्डिंग गिनने की कोशिश की तो लगा कि उनकी तादाद पांच हजार से ज्यादा थी. विधान पार्षद नीरज कुमार घर के बाहर ब़डा गेट लगा कर मशीन से फूल बरसा रहे थे.
ललन सिंह के स्वागत के लिए गाडियों की तादाद की गिनती थी. पूरे बिहार से पहुंची गाड़ियों का आलम ये था कि पटना का बेली रोड कम से कम चार-पांच घंटे तक पूरी तरह जाम रहा. ललन सिंह के समर्थक जितनी गाड़ियां लेकर पहुंचे थे उसे गिन पाना संभव तो नहीं था लेकिन गाड़ियों की संख्या कम से कम दो हजार तो जरूर थी.
नजारा वाकई दिलचस्प था. बेली रोड पर एयरपोर्ट से लेकर इनकम टैक्स चौराहे तक नेताओं ने अपनी अपनी जगह चुन ली थी. धूप कड़ी थी लेकिन नेता अपने समर्थकों के साथ सड़क पर डटे थे. हाथों में बैनर लिये.ताकि ललन सिंह जब गाड़ी में बैठकर भी गुजरे तो पता चल जाये कि किसने स्वागत किया. एयरपोर्ट से जेडीयू दफ्तर तक ललन सिंह के काफिले को कम से कम डेढ़ दर्जन जगहों पर रोक कर स्वागत किया गया.
जेडीयू के कई नेताओं ने ललन सिंह के स्वागत के लिए रैली जैसी तैयारी की थी. विधान पार्षद संजय सिंह के घऱ सुबह से भंडारा चल रहा था. पूड़ी-सब्जी औऱ मिठाई का बंदोबस्त. एमएलसी रणविजय सिंह के घर भी बेहतरीन भोजन का इंतजाम. एमएलसी नीरज कुमार के घर सुबह से ही चूड़ा और घुघनी परोसा जा रहा था. जेडीयू के दर्जनों नेताओं ने अपने घर समर्थकों के लिए भोजन का इंतजाम किया था.
ये सियासी ड्रामा क्यों
अब तक चर्चो हो रही थी उसे नजारे की जो ललन सिंह के स्वागत में दिखी. लेकिन सबसे बड़ा सवाल-इस नजारे के पीछे की कहानी क्या है. सवाल इसलिए भी ज्यादा बड़ा हो गया है कि नीतीश की पार्टी में ललन सिंह का ऐसा स्वागत क्यों. दरअसल क्षेत्रीय पार्टियों में सब कुछ सुप्रीमो के इर्द गिर्द घूमता है. राजद मतलब लालू औऱ तेजस्वी तो जेडीयू का मतलब नीतीश कुमार. जिस पार्टी के सुप्रीमो नीतीश कुमार हों वहां ललन सिंह के लिए इतना बड़ा सियासी तमाशा क्यों खड़ा किया गया.
क्या जेडीयू में नया पावर सेंटर बना है
ये सवाल इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि सियासत में कोई काम बेमकसद नहीं होता. अगर जेडीयू के नेताओं में ललन सिंह का स्वागत करने के लिए ऐसी होड़ दिखी तो इसके पीछे भी कारण है. ललन सिंह के सामने अपना चेहरा औऱ अपनी ताकत दिखा रहे नेता बिना स्वार्थ के तो आये नहीं थे. वह भी लाखों रूपये झोंक कर. इस सवाल का सीधा जवाब यही है कि उन तमाम नेताओं को ललन सिंह में अपना भविष्य नजर आ रहा था. उन्हें लग रहा था कि अगर ललन खुश हुए तो उनका भविष्य संवर सकता है. ये होड इसलिए ही मची थी.
तभी ये बात आती है कि क्या ललन सिंह वाकई इतने पावरफुल हो गये हैं कि नीतीश की पार्टी में उनकी बात चलेगी. ये वही पार्टी है जहां अध्यक्ष कोई हो, फैसले तो नीतीश कुमार ही लेते रहे. जेडीयू के कई नेताओं को वो दौर भी याद है जब शरद यादव जैसे कद्दावर नेता को जेडीयू का अध्यक्ष रहते अपने लिए राज्यसभा की एक सीट लेने के लिए क्या क्या न करना पड़ा था.
ऐसे में क्या ललन सिंह जेडीयू में इतने असरदार हो गये हैं कि नीतीश के फैसले ललन की राय से प्रभावित होंगे. जेडीयू नेताओं के एक बड़े वर्ग को यही लग रहा है. दरअसल पार्टी के ज्यादातर लोग ये पहले से ही ये मानते आये हैं कि नीतीश कुमार के सामने अगर कोई नेता जोर देकर कोई बात कह सकता है तो वह ललन सिंह ही हैं. ललन सिंह के अलावा कोई दूसरा नेता नहीं है जो नीतीश कुमार के सामने सही से बोल भी पाये. पार्टी के एक वरीय नेता बताते हैं कि नीतीश के सबसे करीबी माने जाने वाले आरसीपी सिंह भी बॉस के कानों में ही फुसफुसाते थे. बंद कमरे वाली किसी मीटिंग में भी वे नीतीश कुमार के सामने कभी जोर देकर कोई बात नहीं बोल पाये.
जेडीयू के नेता बताते हैं कि ऐसे कई वाकये आये जब ललन सिंह ने भरी मीटिंग में भी नीतीश कुमार की राय से अलग अपनी राय दी. वे ऐसे वाकयों का उदाहरण भी देते हैं. 2016 के राज्यसभा चुनाव में जब शरद यादव को नीतीश कुमार ने टिकट देने से साफ इंकार कर दिया था तब ललन सिंह ने ही सीएम हाउस जाकर शरद को राज्यसभा भिजवा दिया था. पिछले विधानसभा चुनाव में भी जब नीतीश कुमार चकाई विधानसभा सीट से सुमित कुमार सिंह को टिकट देने का मन बना चुके थे तो ललन सिंह ने अपने खास संजय प्रसाद को सिंबल दिलवा दिया. जेडीयू नेताओं के पास ऐसे वाकयों की फेहरिश्त है.
जेडीयू के नेता आपसी बातचीत में ये भी बताते हैं कि मौजूदा दौर में नीतीश कुमार को अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए ललन सिंह की जरूरत है. नीतीश वोट बैंक की सियासत कर लेगें लेकिन सत्ता बचाये रखने या फिर आगे के राजनीतिक लक्ष्य को हासिल करने के लिए मैनेजमेंट भी जरूरी होगा. नीतीश कुमार के पास अभी ललन सिंह ही एक मात्र मैनेजर बचे हैं. पार्टी में ऐसा कोई नहीं है जो ये काम कर पाये.
ललन सिंह के मैनेजमेंट से नीतीश कुमार चिराग पासवान से बदला ले पाये. तभी चिराग के चाचा औऱ भाई भी पाला बदल कर निकल गये. बिहार में ही चिराग पासवान की पार्टी के एकमात्र विधायक राजकुमार सिंह तभी टूटे जब ललन सिंह ने उन्हें मैनेज किया. दरअसल नीतीश कुमार को पिछले 15-16 सालों में मैनेजमेंट के लिए ललन सिंह के अलावा दूसरा कोई आदमी मिला ही नहीं.
ऐसी परिस्थिति में जेडीयू नेताओं के एक बड़े वर्ग को लगता है कि ललन सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद नये पावर सेंटर बन गये हैं. यानि जेडीयू के फैसलों में सिर्फ नीतीश कुमार की नहीं चलेगी बल्कि ललन सिंह का भी रोल होगा. ललन अगर नाराज हुए तो बहुत कुछ बिगडेगा. खुश हुए तो फ्यूचर बनेगा. पटना में ललन सिंह के स्वागत में हुआ सियासी ड्रामा यही कहानी कह गया.