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1st Bihar Published by: Updated Mon, 09 Aug 2021 09:15:16 PM IST
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PATNA: किसी सियासी दल के लिए ये अजूबा मामला हो सकता है। पार्टी का कोई प्रदेश महासचिव मीडिया में आकर कहे कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उसके नेता नहीं है। वे पार्टी के पदधारक हो सकते हैं लेकिन नेता नहीं। है न अजीबोगरीब बात। लेकिन नीतीश कुमार की अनुशासित पार्टी जेडीयू में ऐसा ही हो रहा है। पार्टी के एक प्रदेश महासचिव ने खुलेआम राष्ट्रीय अध्यक्ष औऱ संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष की हैसियत बता दी है। इसके साथ ही जेडीयू के भीतर चल रहा खेल खुलकर सामने आने लगा है।
जेडीयू का घमासान गहराया
जेडीयू के प्रदेश महासचिव अभय कुशवाहा ने आज मीडिया को बयान दिया है. कहा है पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा उनके नेता नहीं है. वे पार्टी के पदधारक हो सकते हैं लेकिन नेता नहीं. अभय कुशवाहा ने कहा कि उनके नेता तो सिर्फ आरसीपी सिंह औऱ नीतीश कुमार हैं. दूसरे किसी को वे नेता नहीं मानते.
हम आपको बता दें कि ये वही अभय कुशवाहा हैं जिन्होंने पटना शहर में रविवार से ही आरसीपी सिंह के स्वागत में दर्जनों होर्डिंग लगाये हैं. इन होर्डिंग में आरसीपी सिंह के साथ जेडीयू के दर्जनों नेताओं की तस्वीर लगी है. लेकिन पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष औऱ संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष की तस्वीर नहीं है. अभय कुशवाहा के होर्डिंग की खबर रविवार को फर्स्ट बिहार ने चलायी थी उसके बाद पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा ने कहा कि होर्डिंग हटाने का निर्देश दिया गया है. उसके बाद जेडीयू कार्यालय के बाहर लगा होर्डिंग तो हटाया गया लेकिन पटना शहर में दर्जनों ऐसे होर्डिंग जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा को मुंह चिढ़ा रहे हैं. होर्डिंग लगाने वाले अभय कुशवाहा ने आज ललन सिंह औऱ उपेंद्र कुशवाहा को नेता मानने से ही इंकार कर दिया है.
कौन हैं अभय कुशवाहा
पहले जान लें कि अभय कुशवाहा हैं कौन. अभय कुशवाहा 2015 में गया के टिकारी विधानसभा क्षेत्र से जेडीयू के विधायक चुने गये थे. 2020 में उन्हें सीट बदल कर बेलागंज भेजा गया जहां वे चुनाव हार गये. पार्टी ने उन्हें युवा जेडीयू का प्रदेश अध्यक्ष बनाया था. विधानसभा चुनाव के बाद जब जेडीयू संगठन में फेरबदल हुआ तो अभय कुशवाहा को युवा जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष से हटाकर जेडीयू का प्रदेश महासचिव बनाया गया. शुरू से ही वे आऱसीपी सिंह के खास माने जाते रहे हैं. 2015 के चुनाव में भी उन्हें आरसीपी सिंह की सिफारिश पर ही पार्टी का टिकट मिला था. आरसीपी सिह ने ही उन्हें युवा जेडीयू का प्रदेश अध्यक्ष बनाया था. जेडीयू के नेता जानते हैं कि अभय कुशवाहा नियमित तौर पर आऱसीपी सिंह के घर हाजिरी लगाने वाले नेता हैं.
खुलकर सामने आया जेडीयू का खेल
अभय कुशवाहा के होर्डिंग से लेकर बयान को जानने के बाद अब उस खेल को समझिये जो जेडीयू के अंदर चल रहा था लेकिन अब खुलकर बाहर आ रहा है. रविवार को जब अभय कुशवाहा ने होर्डिंग लगाया था तो जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष का बयान आय़ा था. प्रदेश अध्यक्ष ने कहा था कि होर्डिंग हटाने का निर्देश तो दिया ही गया है अभय कुशवाहा से ये भी पूछा जायेगा कि ऐसा क्यों किया. सोमवार को खुद नीतीश कुमार ने कहा कि होर्डिंग लगाने वाले से गलती हो गयी होगी. प्रदेश अध्यक्ष से लेकर मुख्यमंत्री तक की सफाई के बाद आखिरकार अभय कुशवाहा ने कैसे ललन सिंह औऱ उपेंद्र कुशवाहा पर निशाना साध दिया.
ये खेल ऊपर का है
जेडीयू के नेता बताते हैं कि अभय कुशवाहा उन लोगों में से हैं जिनकी दिल्ली में बैठे अपने साहब यानि आरसीपी सिंह से रोज बात होती है. अगर वे पार्टी में रह कर अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष औऱ संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष को हैसियत बता रहे हैं तो ग्रीन सिग्नल उपर से ही मिला होगा. हालांकि अभय कुशवाहा कह रहे हैं कि वे खुद अपनी बात बोल रहे हैं लेकिन बात उतनी सहज नहीं है जितनी सहजता से वे कह रहे हैं.
क्या अब खुलकर मैदान में आ गये हैं आरसीपी
जेडीयू से लेकर बिहार के तमाम सियासी गलियारे में ये बात जगजाहिर हो चुकी है कि आरसीपी सिंह कैसे मंत्री बने. नीतीश कुमार ने तो उन्हें वरतुहारी करने बीजेपी के पास भेजा था. मंत्रिमंडल के विस्तार में जेडीयू को कितनी सीटें मिलेंगी ये तय करने भेजा था. लेकिन आऱसीपी खुद मंत्री बन गये. नीतीश इंतजार करते रह गये कि आरसीपी सिंह ये आकर बतायेंगे कि बीजेपी कितने मंत्री पद दे रही है लेकिन आरसीपी खुद शपथ लेने निकल लिये. नीतीश कुमार की हालत ये थी कि वे ये भी नहीं बोल सकते थे कि उनके सबसे करीबी, 23 साल के साथी और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने ही दगा दे दिया.
जानकार बताते हैं कि आऱसीपी सिंह तो जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ने तक को तैयार नहीं थे. नीतीश कुमार को सख्त तेवर अपनाना पड़ा तब जाकर आऱसीपी सिंह ने जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ा. लेकिन अपना खेल शुरू कर दिया. ललन सिंह के अध्यक्ष बनने के बाद ही आरसीपी सिंह ने अपने समर्थकों को मैसेज कर दिया था कि वे 16 अगस्त को मंत्री बनने के बाद पहली दफे पटना आ रहे हैं. उन्हें खास तौर पर ये कहा गया कि स्वागत का इंतजाम ऐसा होना चाहिये जिससे कि पार्टी में मैसेज चला जाये कि आऱसीपी सिंह की क्या हैसियत है. 6 अगस्त को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनकर पटना आये ललन सिंह के स्वागत के बंदोबस्त के बाद आऱसीपी सिंह ने अपने लोगों को औऱ टाइट किया.
जेडीयू के एक नेता ने बताया कि हर रोज दिल्ली से फोन आ रहा है. दरअसल जेडीयू के संगठन का पूरा काम पिछले 10-12 सालों से आऱसीपी सिंह ही देख रहे थे. जेडीयू के प्रदेश पदाधिकारियों से लेकर जिलाध्यक्षों में ज्यादातर आदमी आऱसीपी सिंह के अपने लोग हैं. ऐसे ज्यादातर लोगों की दुविधा ये है कि ललन सिंह उन्हें गले लगायेंगे नहीं. नीतीश कुमार से वे डायरेक्ट बात कर नहीं सकते. लिहाजा वे यही चाह रहे हैं कि आरसीपी मजबूत बने रहे. आरसीपी सिंह के मजबूत रहने पर ही पार्टी में उनकी चलेगी.
उधर आऱसीपी सिंह खुला खेल खेलने के मूड में आ चुके हैं. नीतीश कुमार को वे गच्चा दे चुके हैं. ये दीगर बात है कि 23 सालों से नीतीश के साथ साये की तरह रहने वाले आऱसीपी सिंह के सीने में इतने राज दफन हैं कि नीतीश बहुत चाह कर भी आरसीपी से पल्ला नहीं झाड़ सकते. लेकिन नीतीश ने अपने सबसे प्रमुख मैनेजर ललन सिंह को आगे कर दिया है. आऱसीपी सिंह की ललन सिंह से जमाने से चली आ रही दोस्ती टूट चुकी है. ललन सिंह अब उपेंद्र कुशवाहा को आगे कर रहे हैं. केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार के बाद ललन सिंह दो दफे उपेंद्र कुशवाहा के घर जा चुके हैं. ये वही ललन सिंह हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि अगर नीतीश कुमार खुद न बुलायें तो वे सीएम हाउस भी नहीं जाते।
जेडीयू के एक बड़े नेता ने फर्स्ट बिहार को बताया कि आऱसीपी सिंह समझ रहे हैं कि अगर नीतीश कुमार ललन सिंह औऱ उपेंद्र कुशवाहा पर डिपेंटडेंट हो गये तो फिर उनका खेल खत्म हैं. 2022 में आऱसीपी सिंह का राज्यसभा का कार्यकाल पूरा हो रहा है और जो हालात बन रहे हैं उसमें आऱसीपी सिंह का फिर से राज्यसभा जाना भी मुश्किल होगा. ऐसे में आरसीपी सिंह अब खुले खेल पर उतर गये हैं. वे अपनी ताकत दिखाना चाहते हैं. वे दिखाना चाहते हैं कि जेडीयू उनकी मर्जी के बगैर नहीं चलायी जा सकती।
अभी औऱ आगे बढ़ेंगे आऱसीपी
जेडीयू के जानकार बता रहे हैं कि नीतीश कुमार के साथ मजबूरी ये है कि वे आऱसीपी सिंह को अचानक से खारिज भी नहीं कर सकते. आरसीपी सिंह उनके सबसे बड़े राजदार हैं. लिहाजा आरसीपी सिंह जो खेल खेल रहे हैं उसे जान समझ कर भी नीतीश कुछ कर नहीं पा रहे हैं. आरसीपी सिंह भी नीतीश कुमार की बेबसी समझ रहे हैं. लिहाजा वे प्रेशर बढायेंगे. वे हर ऐसा काम करेंगे जिससे जेडीयू के भीतर उनकी ताकत दिखती रहे. जानकार बता रहे हैं कि अभी तो अभय कुशवाहा का बयान ही आया है, बहुत कुछ सामने आना बाकी है।