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शहादत दिवस: मुफलिसी में जी रहा शहीद जुब्बा सहनी का परिवार, दाने-दाने को तरसते हैं बच्चे

1st Bihar Published by: Updated Thu, 11 Mar 2021 01:45:23 PM IST

शहादत दिवस: मुफलिसी में जी रहा शहीद जुब्बा सहनी का परिवार, दाने-दाने को तरसते हैं बच्चे

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MUZAFFARPUR  : शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा....' भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले अमर शहीद जुब्बा के शहादत दिवस पर नेता, राजनेता उन्हें याद कर अपनी रोटी सेंकते हैं पर शायद ही कोई उनके परिवार के बारे में सोचता है. 

11 मार्च को पूरे देश में शहादत दिवस के मौके पर जुब्बा सहनी को याद कर उनकी गाथा गाई जाती है, पर आज उनके बच्चें किस हाल में हैं यह किसी को भी जानने या सोचने की फुर्सत नहीं है. जिस जुब्बा सहनी ने देश के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी आज उनका परिवार किस तरह से मुफलिसी में और गुमनामी में जी रहा है यह हम आपको बताते हैं. अमर शहीद जुब्बा सहनी का परिवार मीनापुर प्रखंड के चैनपुर गांव में रहता है. एक छोटे से मिट्टी के घर में न तो सिर के उपर छत है और न ही कोई सुख-सुविधा. उनका परिवार आज दूसरे के जमीन में मजदूरी करके अपना पेट पाल रहा है. घर के नाम पर मिट्टी की दिवाल और छत के नाम पर फूस की पलानी, वो भी जगह-जगह से टूटी हुई. 

जिस जुब्बा सहनी के नाम पर मुजफ्फरपुर में अमर शहीद जुब्बा साहनी  पार्क बनाया गया है, आज उसी का परिवार दाने-दाने के लिए मोहताज है. जुब्बा सहनी के घर के पास रहने वाली एक 75 साल की महिला ने बताया कि अबतक के उम्र में मैं देख चुकी हूं कि कई सरकार और लोग यहां आए और गए पर परिवार की सुध लेने वाला कोई नहीं है. बस जुब्बा सहनी के नाम पर सियासत चमकाते हैं और यहां से चलते बनते हैं. न  तो उनके परिवार के लिए कुछ किया गया और न ही गांव में कुछ किया गया.   चुनाव के समय भी जुब्बा सहनी को खूब याद किया जाता है पर परिवार की हालत ये है कि सिर ढकने के लिए एक छत भी नहीं हैं. 

बता दें कि 11 मार्च को पूरे देश भर में जुब्बा साहनी का शहादत दिवस मनाया जाता है. जुब्बा साहनी का नाम बिहार के स्वतंत्रता सेनानियों में शुमार है और इस दिन पूरा देश उन्हें नमन करता है. 11 मार्च 1944 को जुब्बा सहनी को भागलपुर के केन्द्रीय कारगर में अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी. भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान जुब्बा साहनी ने 16 अगस्त 1942 को मीनापुर थाने के अंग्रेज इंचार्ज लियो वालर को थाने में जिंदा जला दिया था. जिसके बाद वह पकड़े गए थे और 11 मार्च 1944 को उन्हें फांसी दी गई थी.