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1st Bihar Published by: Updated Sun, 29 Mar 2020 10:42:38 AM IST
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DESK : चैत्र नवरात्रि का आज पांचवां दिन है. नवरात्री के पांचवे दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है. कहा जाता है स्कंदमाता की कृपा से शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने और कठिन परिस्थितियों से उबरने में मदद मिलती है. नि:संतान दंपत्ति यदि स्कंदमाता की पूजा करें तो उन्हें संतान प्राप्ति का वरदान मिलता है.
स्कंदमाता का स्वरूप
स्कंदमाता का अर्थ है स्कंद की मां. भगवन कार्तिकेय का दूसरा नाम स्कंद है. जब मां पार्वती ने स्कंद को जन्म दिया तो स्कंदमाता कहलाई. देवी दुर्गा का पांचवां स्वरुप बेहद सौम्य है. सिंह पर सवार मां अपनी गोद में स्कंद कुमार को बैठाये हुए हैं. स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं. वे अपने बाएं हाथ से सनतकुमार को पकड़ी हैं और दाएं हाथ को अभय मुद्रा में रखते हुए भक्तों को आशीर्वाद देती है, अन्य दो हाथों में कमल पुष्प धारण करती हैं. मां दुर्गा का स्कंदमाता स्वरूप अदम्य साहस और करुणा से परिपूर्ण है. स्कंदमाता की आराधना करने से भगवान कार्तिकेय की कृपा भी बनी रहती है.
पूजा विधि
नवरात्रि के पांचवे दिन रविवार की सुबह स्नानादि से निवृत हो जाने के बाद स्कंदमाता की विधि विधान से पूजा करें. मां की पूजा करने के लिए उन्हें सिंदूर, धूप, गंध, अक्षत् आदि अर्पित करें. मां को लाल रंग का पुष्प जरूर अर्पित करें. देवी दुर्गा के पूजा में लाल पुष्प का विशेष महत्व है. इसलिए पूजा में माता को गुड़हल या लाल गुलाब अर्पित करना चाहिए. इसे अर्पित करने से माता अत्यंत प्रसन्न होती है और आपकी मनोकामनाओं को पूरी करती है.
माता का मंत्र
ओम देवी स्कन्दमातायै नमः॥
या
या देवी सर्वभूतेषु मां स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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स्कंदमाता की कथा
स्कंदमाता यानी स्कंद की मां. कार्तिकेय माता पार्वती और भगवान शिव के बड़े पुत्र है, उनका एक नाम स्कंद भी है. जब माता पार्वती ने स्कंद को जन्म दिया, उसके बाद वो स्कंदमाता कहलाने लगीं. हालांकि एक और मान्यता है कि आदिशक्ति जगदम्बा ने बाणासुर के अत्याचार से संसार को मुक्त कराने के लिए अपने तेज से एक बालक को जन्म दिया.