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Diwali 2025: दूर कर लें कंफ्यूजन! 20 या 21 अक्टूबर कब है दीपावली? जानें शुभ मुहूर्त और पूजा का सही समय

Diwali 2025: दीपावली का पर्व नजदीक है और हर साल की तरह इस बार भी इसकी सही तिथि को लेकर लोगों में थोड़ी उलझन देखने को मिल रही है। हिंदू परंपरा के अनुसार दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या की रात को मनाया जाता है, जिसे रात में मनाने की विशेष परंपरा है।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sun, 12 Oct 2025 03:27:36 PM IST

Diwali 2025

दिवाली 2025 - फ़ोटो GOOGLE

Diwali 2025: दीपावली का पर्व नजदीक है और हर साल की तरह इस बार भी इसकी सही तिथि को लेकर लोगों में थोड़ी उलझन देखने को मिल रही है। हिंदू परंपरा के अनुसार दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या की रात को मनाया जाता है, जिसे रात में मनाने की विशेष परंपरा है। इस अवसर पर विशेष रूप से मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है ताकि घर में सुख, समृद्धि और धन का वास हो। इस वर्ष 2025 में दीपावली 20 अक्टूबर को मनाई जाएगी। अमावस्या तिथि का प्रारम्भ 20 अक्टूबर दोपहर 3:44 बजे से और समाप्ति 21 अक्टूबर शाम 5:54 बजे तक है। इस तिथि के अनुसार अधिकांश पूजन और शुभ मुहूर्त 20 अक्टूबर की रात को ही होंगे। हालांकि, कुछ लोग उदयातिथि के अनुसार 21 अक्टूबर को भी पूजन कर सकते हैं, लेकिन ज्योतिषाचार्यों का बहुमत 20 अक्टूबर की रात को ही अधिक फलदायी मानता है।


दीपावली के दिन कई शुभ मुहूर्त निर्धारित किए गए हैं। सुबह 4:46 से 6:25 बजे तक रूप चौदस स्नान का समय है, अभिजीत मुहूर्त 11:48 से 12:34 बजे तक रहेगा। संध्या पूजा का समय शाम 5:57 से 7:12 बजे तक रहेगा और मुख्य लक्ष्मी पूजा शाम 7:23 से 8:27 बजे तक संपन्न होगी। प्रदोषकाल और निशीथकाल भी लक्ष्मी पूजन के समय से जुड़े हैं, जबकि वृषभकाल 7:23 से 9:22 बजे तक रहेगा। चौघड़िया के अनुसार, दिन का शुभ समय सुबह 9:18 से 10:45 बजे और लाभकाल दोपहर 3:04 से 4:31 बजे तक है। इसके अलावा रात 10:38 से 12:11 बजे तक लाभकाल भी शुभ माना गया है। ध्यान दें कि राहुकाल सुबह 7:52 से 9:18 बजे तक रहेगा और समय में 2–5 मिनट का अंतर संभव है।


लक्ष्मी पूजा की विधि भी विशेष ध्यान देने योग्य है। सबसे पहले नित्य कर्म से निवृत्त होकर माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र को लाल या पीले कपड़े पर सजाकर लकड़ी के पाट पर रखें। मूर्ति को स्नान कराएं और चित्र को अच्छी तरह साफ करें। इसके बाद धूप और दीप जलाएं, देवी के मस्तक पर हल्दी, कुंकुम, चंदन और चावल लगाएं। मूर्ति को हार और फूलों से सजाएं। पूजन में अनामिका अंगुली (रिंग फिंगर) का उपयोग करके गंध, चंदन, कुमकुम, अबीर, गुलाल, हल्दी और मेहंदी लगाना चाहिए। उसके बाद नैवेद्य (भोग) अर्पित करें और अंत में माता की आरती उतारें। पूजा के बाद प्रसाद का वितरण किया जाता है।


दीपावली का यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और पारिवारिक मिलन का भी अवसर है। घर को साफ-सुथरा करना, दीप जलाना, मिठाइयां बाँटना और रिश्तेदारों के साथ मिलकर खुशियाँ मनाना इस पर्व की मुख्य विशेषताएं है। इस वर्ष भी लोग दीपावली की रात को दीपों की रोशनी और लक्ष्मी पूजा के साथ सुख-समृद्धि की कामना करेंगे।