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Tulsi Vivah 2025: तुलसी विवाह कब है? जानिए देवउठनी एकादशी की पूरी पूजा विधि

Tulsi Vivah 2025: हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। इसे हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Wed, 15 Oct 2025 12:29:05 PM IST

Tulsi Vivah 2025

तुलसी विवाह - फ़ोटो GOOGLE

Tulsi Vivah 2025: हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। इसे हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं, जिसे देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन के बाद से ही विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन और अन्य सभी शुभ कार्यों की शुरुआत होती है।


इस वर्ष तुलसी विवाह 2 नवंबर 2025 को मनाया जाएगा। द्वादशी तिथि सुबह 07:31 बजे से शुरू होकर 3 नवंबर की सुबह 05:07 बजे तक रहेगी। इस दिन भक्त देवी तुलसी और भगवान शालिग्राम (विष्णु का रूप) का विवाह पारंपरिक विधि से संपन्न करते हैं। मंदिरों और घरों में विशेष पूजा, भजन-कीर्तन और वैवाहिक रस्में जैसे मंडप सजाना, कन्यादान और सात फेरे कराए जाते हैं। यह विवाह जीवन में सुख-समृद्धि, सौभाग्य और धार्मिक शुद्धता लाने वाला माना जाता है।


तुलसी विवाह के दिन घर की साफ-सफाई कर पवित्र वातावरण तैयार करना आवश्यक होता है। तुलसी के पौधे को किसी शुभ स्थान पर रखें और उसे लाल वस्त्र, फूलों और गहनों से सजाएं। तुलसी माता को कुमकुम, चूड़ा, हल्दी और पुष्प अर्पित करें।


भगवान शालिग्राम को तुलसी के बाईं ओर स्थापित करें और तुलसी पर जल चढ़ाकर सिंदूर लगाएं। इसके बाद दोनों की आरती करें और मिठाई व प्रसाद वितरित करें। विवाह के दौरान “शुभ विवाह मंत्रों” का उच्चारण कर कन्यादान और फेरे की रस्में पूरी की जाती हैं। पूजा समाप्त होने के बाद परिवारजनों में प्रसाद का वितरण किया जाता है।


पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में जालंधर नामक एक शक्तिशाली असुर हुआ करता था। उसकी शक्ति उसकी पत्नी वृंदा के पतिव्रता धर्म के कारण थी। देवता उसके आतंक से परेशान होकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे। समस्या के समाधान के लिए विष्णु जी ने जालंधर का रूप धारण कर वृंदा का पतिव्रत धर्म तोड़ दिया, जिससे जालंधर की शक्ति समाप्त हो गई और भगवान शिव ने उसका वध कर दिया।


जब वृंदा को यह छल ज्ञात हुआ, तो उन्होंने विष्णु जी को श्राप दिया कि वे पत्थर बन जाएं। इस श्राप के बाद विष्णु जी शालिग्राम रूप में परिवर्तित हो गए। बाद में वृंदा ने आत्मदाह कर लिया और उनके भस्म से तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ। भगवान विष्णु ने वचन दिया कि “तुलसी” उनके लिए सदा प्रिय रहेंगी, और उनका विवाह हर साल तुलसी के साथ होगा।


तुलसी विवाह को सद्भाव, सौभाग्य और वैवाहिक सुख से जोड़कर देखा जाता है। कहा जाता है कि इस दिन जो भक्त तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराते हैं, उनके घरों में सुख-शांति, समृद्धि और देवी लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। तुलसी विवाह के साथ ही हिंदू समाज में शुभ कार्यों का शुभारंभ भी होता है।