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महाशिवरात्रि के दिन कैसे करें शिव पूजा, पौराणिक कथा का मार्गदर्शन जानें

महाशिवरात्रि हिंदू धर्म का एक प्रमुख और पावन पर्व है, जो भगवान शिव की महिमा का जश्न मनाने के लिए समर्पित है। इस दिन को फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sun, 23 Feb 2025 07:44:17 AM IST

Worship Shiva

Worship Shiva - फ़ोटो Worship Shiva

महाशिवरात्रि एक ऐसा पावन पर्व है जिसमें भगवान शिव के प्रति अनन्य श्रद्धा और भक्ति प्रकट होती है। हिंदू धर्मग्रंथ शिवपुराण के अनुसार, ब्रह्मा और विष्णु के बीच हुए विवाद को शांत करवाने हेतु भगवान शिव ने शिवलिंग के रूप में प्रकट होकर श्रेष्ठता स्थापित की थी। इसी अद्भुत घटना के स्मरण में फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि मनाई जाती है।


महाशिवरात्रि की तिथि एवं समय

पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की शुरुआत 26 फरवरी को सुबह 11:08 से होती है और यह तिथि 27 फरवरी को सुबह 8:54 पर समाप्त हो जाती है। विशेष रूप से निशा काल में भगवान शिव की पूजा का महत्व अत्यधिक माना जाता है।


पूजा-अर्चना और व्रत के महत्व

विशेष पूजा: महाशिवरात्रि के दिन माना जाता है कि भगवान भोलेनाथ पृथ्वी पर स्थित सभी शिवलिंगों में विराजमान होते हैं। इसी कारण, इस दिन की गई शिवपूजा से अनेक गुना फल प्राप्त होता है।

रुद्राभिषेक: कई भक्त अपने-अपने घरों में रुद्राभिषेक करवाते हैं। विशेषकर यदि बेलपत्र का उपयोग कर भगवान शिव की पूजा की जाए तो धन संबंधी बाधाएं दूर होने का विशेष श्रेय मिलता है।

महामृत्युंजय मंत्र का जप: डा. अनीष व्यास के अनुसार, महाशिवरात्रि पर महामृत्युंजय मंत्र –

"ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्, उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्"

– का 108 बार जप करने से अनजाने भय और चिंताएं दूर होती हैं तथा शिवजी की कृपा से जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।


चार प्रहर की पूजा

धर्म शास्त्रों के अनुसार, महाशिवरात्रि के पर्व काल में चार प्रहर की साधना का विशेष महत्व है। प्रत्येक प्रहर में शिवपूजा के विभिन्न रूप वर्णित हैं, जिनके अनुसार साधना करनी चाहिए:

प्रथम प्रहर (सायं 06:19 बजे से रात्रि 09:26 बजे तक): इस दौरान भक्तों को अपनी श्रद्धा के अनुसार प्रारंभिक पूजा करनी चाहिए।

द्वितीय प्रहर (रात्रि 09:26 बजे से मध्यरात्रि 12:34 बजे तक): मध्यरात्रि में गहन साधना और मंत्र जप करें।

तृतीय प्रहर (मध्यरात्रि 12:34 बजे से 27 फरवरी, प्रातः 03:41 बजे तक): इस प्रहर में विशेष ध्यान और साधना से मनोकामनाओं में वृद्धि होती है।

चतुर्थ प्रहर (27 फरवरी, प्रातः 03:41 बजे से प्रातः 06:48 बजे तक): अंतिम प्रहर में शिवजी की कृपा से जीवन में धन, यश, प्रतिष्ठा और समृद्धि का आगमन होता है।

चार प्रहर की पूजा से विशेषकर संतान संबंधी बाधाओं को दूर करने एवं जीवन में खुशियों का संचार करने का वरदान प्राप्त होता है।


शिवपूजा में अभिषेक और अन्य विधियाँ

महाशिवरात्रि के दिन निम्नलिखित उपायों से भगवान शिव का अभिषेक करने का विशेष महत्व है:

शहद से अभिषेक: शिवलिंग पर शहद से अभिषेक करने से भक्त के कार्यों में आने वाली बाधाएँ दूर हो जाती हैं।

दही से रुद्राभिषेक: शिवजी का दही से अभिषेक करने से आर्थिक परेशानियाँ दूर होती हैं।

गन्ने के रस से अभिषेक: गन्ने के रस से अभिषेक करने पर माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।

मंत्र जाप: अभिषेक करते समय 108 बार "ॐ पार्वतीपतये नमः" का जप करने से जीवन में अकाल संकट दूर रहते हैं।

इसके अतिरिक्त, शिवपूजा में पंचामृत से स्नान, केसर के 8 लोटे जल चढ़ाना, रात्रि भर दीपक जलाना, चंदन का तिलक लगाना तथा बेलपत्र, भांग, धतूरा, तुलसी, जायफल, कमल गट्टे, फल, मिष्ठान, मीठा पान, इत्र और दक्षिणा चढ़ाना शामिल है। अंत में केसर युक्त खीर का भोग लगाकर प्रसाद बांटा जाता है।


घर में शिवलिंग स्थापना के नियम

यदि आप मंदिर नहीं जा पाते, तो घर में शिवलिंग स्थापित कर पूजा कर सकते हैं। पूजा के लिए ध्यान रखें:

आकार: घर के लिए छोटा शिवलिंग उत्तम माना जाता है; हाथ के अंगूठे के पहले भाग से बड़ा शिवलिंग न हो।

सामग्री: सोना, चांदी, पीतल या मिट्टी-पत्थर के शिवलिंग शुभ हैं।

वर्जित धातुएँ: एल्युमीनियम, स्टील या लोहे के शिवलिंग से दूर रहें।

अन्य प्रतिमाएँ: शिवलिंग के साथ गणेश, देवी पार्वती, कार्तिकेय स्वामी और नंदी की छोटी प्रतिमा भी स्थापित करें।


पौराणिक कथा: ब्रह्मा-विष्णु विवाद और शिवजी की प्रकटता

शिवपुराण के अनुसार, एक बार ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता का विवाद हुआ। दोनों देवता दिव्यास्त्रों से युद्ध आरंभ करने वाले थे, तभी भगवान शिव ने शिवलिंग के रूप में प्रकट होकर कहा कि जिस देवता को इस लिंग का अंत खोज लेगा, वही श्रेष्ठ होगा। ब्रह्मा और विष्णु अपने-अपने छोर की ओर बढ़े, लेकिन अंत तक उन्हें लिंग का छोर नहीं मिला। ब्रह्मा ने केतकी के पौधे का उपयोग कर झूठ बोला कि उन्होंने लिंग का अंत खोज लिया है, जिससे शिवजी क्रोधित हो गए। इस घटना के कारण ब्रह्मा को झूठ बोलने का दंड मिला और विष्णु को श्रेष्ठ घोषित कर दिया गया। इसी घटना को स्मरण करने हेतु फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।


महाशिवरात्रि 2025 एक ऐसा पावन अवसर है जिसमें भगवान शिव की पूजा, चार प्रहर की साधना और विशेष अभिषेक विधियों के माध्यम से भक्त अपने जीवन में समृद्धि, शांति और सुख की प्राप्ति कर सकते हैं। इस दिन शिवलिंग पर बेलपत्र से पूजा करना, महामृत्युंजय मंत्र का जप करना एवं पौराणिक कथाओं का स्मरण करना भक्तों के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है।