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ADR REPORT 2025 : राजनीतिक दल में केंद्र से लेकर प्रदेश तक..., वंशवाद की राजनीति में कौन आगे? लालू परिवार नहीं यह हैं सबसे आगे

ADR REPORT 2025 : राज्यों की विधानसभा हो या देश की लोकसभा, वंशवाद की बेल हर जगह लहलहा रही है। सता में बैठा हर पांचवा नेता वंशवादी राजनीतिक की देन है। लोकसभा में एक तिहाई सांसद की वंशवाद उपज है

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sat, 13 Sep 2025 10:33:09 AM IST

Dynastic politics india

Dynastic politics india - फ़ोटो FILE PHOTO

ADR REPORT 2025 : देश की राजनीति हो या फिर किसी राज्य की राजनीति हर जगह एक चीज तो आम हो गई है। वह कुछ इस तरह है कि यदि किसी एक घर में कोई शख्स राजनीति में है तो फिर उसकी अगली पीढ़ी भी राजनीति में आएगी ही आएगी। भारतीय राजनीति में वंशवाद की राजनीति को लेकर लगातार सभी दल एक दूसरे पर आरोप लगाते रहते हैं। हालांकि, कोई भी दल खुद की गिरेबान में झांक कर नहीं देखता कि उसके दल में कितने ऐसे नेता है, जो सिर्फ और सिर्फ परिवारवाद राजनीति की ही उपज हैं। अब इसी चीज़ को लेकर एडीआर की रिपोर्ट सामने आई है। 


जानकारी के अनुसार, राज्यों की विधानसभा हो या देश की लोकसभा, वंशवाद की बेल हर जगह लहलहा रही है। सता में बैठा हर पांचवा नेता वंशवादी राजनीतिक की देन है। लोकसभा में एक तिहाई सांसद की वंशवाद उपज है या परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। वहीं राज्यों की विधानसभाओं में ऐसे सदस्य 20 प्रतिशत हैं। एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक निकानों (एडीआर) के अनुसार दिखाता है कि राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश पर स्थापित राजनीतिक परिवारों पर कड़ा नियंत्रण है। 


रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल 5,204 मौजूदा सांसदों, विधायकों और विधान परिषद सदस्यों में से 1,107 यानि 21 प्रतिशत नेता वंशवादी पृष्ठभूमि रखते हैं। राष्ट्रीय दलों में कांग्रेस सबसे आगे है, जहां 32 प्रतिशत नेताओं का राजनीतिक परिवार से ताल्लुक है। भाजपा में यह आंकड़ा 18 प्रतिशत है, जबकि वाम दल सीपीआई(एम) में सिर्फ आठ प्रतिशत प्रतिनिधि ऐसे हैं। लोकसभा में वंशवाद सबसे गहरा है, जहां 31 प्रतिशत सांसद राजनीतिक परिवारों से आते हैं। राज्यसभा में यह 21 प्रतिशत और विधान परिषदों में 22 प्रतिशत है। राज्य विधानसभाओं में यह संख्या अपेक्षाकृत कम है, लेकिन वहां भी यह 20 प्रतिशत तक पहुंचती है।



रिपोर्ट बताती है कि भारत के कई बड़े राज्यों में राजनीति पूरी तरह परिवार आधारित होती जा रही है। सबसे ज्यादा संख्या उत्तर प्रदेश में है, जबकि अनुपात के लिहाज से आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र वंशवाद के गढ़ बने हुए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 604 मौजूदा सांसद, विधायक और विधान परिषद सदस्यों का विश्लेषण किया गया, जिनमें से 141 यानि 23% नेता वंशवादी पृष्ठभूमि से हैं। इसीलिए संख्या के लिहाज से यूपी सबसे आगे है।


महाराष्ट्र इस मामले में दूसरे नंबर पर है, जहां 129 यानि 32 प्रतिशत नेताओं का ताल्लुक राजनीतिक परिवार से है। बिहार में भी वंशवाद गहराई तक पहुंचा हुआ है, यहां 96 यानि 27 प्रतिशत नेताओं की पृष्ठभूमि राजनीतिक है। वहीं, अगर दक्षिण भारत की राजनीत में नजर डाले तो कर्नाटक में 94 यानि 29 प्रतिशत और आंध्र प्रदेश में 86 यानि 34 प्रतिशत नेता वंशवादी परिवारों से ही आते हैं। अनुपात के हिसाब से आंध्र प्रदेश सबसे ऊपर है, जहां हर तीन में से एक नेता राजनीतिक परिवार से है।


असम में सिर्फ नौ प्रतिशत यानि 13 नेता ही वंशवाद की उपज हैं। यह आंकड़े साफ बताते हैं कि भारतीय राजनीति में वंशवाद क्षेत्रीय रूप से भले अलग-अलग दिखे, लेकिन बड़े और प्रभावशाली राज्यों में यह लोकतंत्र की सबसे गहरी जड़ बन चुका है। राज्य स्तरीय दलों में एनसीपी (शरदचंद्र पवार गुट) और जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस 42 प्रतिशत के साथ सबसे ऊपर हैं। वाईएसआर कांग्रेस में 38 और टीडीपी में 36 प्रतिशत नेताओं का राजनीतिक परिवार से ताल्लुक है। वहीं तृणमूल कांग्रेस (10 प्रतिशत) और एआईएडीएमके (चार प्रतिशत) में वंशवाद बेहद कम दिखता है।


इधर,रिपोर्ट का सबसे अहम पहलू यह है कि महिला नेताओं में वंशवाद की हिस्सेदारी पुरुषों से कहीं ज्यादा है। कुल महिला सांसदों और विधायकों में से 47 प्रतिशत राजनीतिक परिवार से हैं, जबकि पुरुषों में यह आंकड़ा 18 प्रतिशत है। महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में 60 से 70 प्रतिशत महिला नेता वंशवादी पृष्ठभूमि से आती हैं।


रिपोर्ट बताती है कि वंशवाद केवल सीटों की विरासत नहीं है, बल्कि यह भारतीय राजनीति का ढांचा बन चुका है। उम्मीदवारों के चयन में ‘विन्नेबिलिटी’, चुनावों का महंगा होना और दलों में आंतरिक लोकतंत्र की कमी इसकी बड़ी वजहें हैं। पार्टियां अक्सर उन्हीं नेताओं को प्राथमिकता देती हैं जिनके पास पहले से पैसे, ताकत और संगठनात्मक नेटवर्क मौजूद हैं।