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Bihar road accident: बिहार में सड़कें बनीं विकास का संकेत, लेकिन युवाओं के लिए बनीं मौत का रास्ता

Bihar road accident: बिहार में सड़कों का विस्तार विकास का प्रतीक माना गया, लेकिन इसी रफ्तार ने अब जानलेवा मोड़ ले लिया है। हर साल हज़ारों युवा सड़क हादसों का शिकार हो रहे हैं|

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Tue, 15 Apr 2025 08:21:13 PM IST

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प्रतीकात्मक तस्वीर - फ़ोटो Google

Bihar road accident: बिहार में सड़कें अब सिर्फ यात्रा का ज़रिया नहीं, बल्कि जानलेवा रास्ता बन चुकी हैं। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में हुए कुल सड़क हादसों में 78% मामलों में लोगों की जान चली जाती है। यानी यदि राज्य में 100 दुर्घटनाएं होती हैं, तो उनमें औसतन 78 लोग अपनी जान गंवा देते हैं। यह आंकड़ा देश में दूसरे सबसे खतरनाक राज्य के रूप में बिहार को दर्शाता है। पहले स्थान पर मिजोरम है, जहां 80% हादसों में मौत होती है।


हाल के वर्षों के आँकड़ों में यह बात और अधिक स्पष्ट हो जाती है। 2023 में बिहार में लगभग 10,000 सड़क हादसे हुए, जिनमें करीब 8,900 लोगों की जान चली गई। 2022 में 8.9 हजार, 2021 में 7.66 हजार, 2020 में 6.7 हजार और 2016 में 4.9 हजार मौतें हुईं। इन आँकड़ों से स्पष्ट होता है कि पिछले छह सालों में दुर्घटनाओं की दर में 80% से अधिक की वृद्धि हुई है। विशेष रूप से, सड़क हादसों में सबसे अधिक प्रभावित वर्ग युवा हैं, जो अपने सपनों को पंख देने के बजाय तेज रफ्तार, खराब सड़कें और सिस्टम की अनदेखी के कारण असमय मौत का शिकार हो रहे हैं।


रोड एक्सीडेंट बढ़ने के पीछे कई कारण मौजूद होते हैं। सबसे बड़े कारणों में ओवरस्पीडिंग और लापरवाही शामिल हैं, खासकर नेशनल हाईवे पर। इसके साथ ही, सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूकता की कमी, जैसे हेलमेट, सीट बेल्ट और ट्रैफिक नियमों का पालन न करना गंभीर एक्सीडेंट के कारण बनते हैं। आंकड़ों की माने तो, बिहार में कुल ब्लैक स्पॉट्स में से बहुत ही कम को सुधारा जा सका है। जबकि दिल्ली, यूपी और झारखंड जैसे राज्य ब्लैक स्पॉट्स को समाप्त करने में काफी आगे हैं, वहीं बिहार में सुधार की गति अत्यंत धीमी रही है।


अगर सिस्टम कि लापरवाही की बात करें तो पटना हाईकोर्ट में दायर एक जनहित याचिका (PIL) ने खुलासा किया गया था  कि बिहार में 126 स्वीकृत मोटर व्हीकल इंस्पेक्टर (MVI) पदों में से केवल 19 सक्रिय हैं। इस कमी के चलते फर्जी फिटनेस सर्टिफिकेट और ड्राइविंग लाइसेंस की धांधली हो रही है, जो सीधे तौर पर दुर्घटनाओं की उच्च दर में योगदान देती है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की पिछले बर्ष की  रिपोर्ट के अनुसार, देश में धार्मिक स्थलों के निकट भी सबसे ज्यादा हादसे बिहार में होते हैं, जहाँ करीब 2,995 लोगों की मौत हो जाती है। यह एक नया और खतरनाक ट्रेंड है, जो बिहार की सड़कों को और धार्मिक  स्थानों के आस पास और सावधान रहने कीओर इशारा करता करती हैं |    


आपको बता दे कि सरकार इन समस्याओं से निपटने के लिए 4 E मॉडल—शिक्षा, प्रवर्तन, इंजीनियरिंग और आपातकालीन देखभाल पर काम कर रही है। स्पीड रडार, एंबुलेंस सेवा और बुनियादी ढांचे में सुधार की पहल भी की जा रही है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर सुधार की गति अभी भी धीमी प्रतीत होती है। जब तक प्रशासन ब्लैक स्पॉट्स के प्रभावी ढंग से निवारण नहीं करता, ड्राइविंग टेस्ट और लाइसेंस प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं होगी ,और युवा खुद जब तक अवेयर और अपनी जान की वैल्यू नही करेंगे तब तक यह भयाबह मौतों का ग्राफ रुकेगा नहीं। बिहार में फैलते सडकों का  जाल विकाश का  प्रतिक माने जाते हैं ,लेकिन आज वे युवाओं के लिए मौत का रास्ता बन चुकी हैं।