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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Tue, 09 Sep 2025 08:30:18 AM IST
LALU YADAV - फ़ोटो FILE PHOTO
LALU YADAV : जमीन के नौकरी घोटाला मामले में लालू यादव ने एक बार फिर बड़ा कदम उठाया है। उन्होंने कोर्ट पहुंच कर इस मामले को रद्द किए जाने की प्राथमिकी दर्ज करवाई है। इसके बाद इस मामले को लेकर चर्चा शुरू हो गई है कि क्या अब प्राथमिकी दर्ज करवाया गया है इस पर कोर्ट कोई फैसला लेगी?
जानकारी के अनुसार, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने हाई कोर्ट में 'जमीन के बदले नौकरी घोटाले' मामले में दर्ज सीबीआई FIR को रद्द करने की मांग की। उनका कहना है कि यह एफआईआर आवश्यक मंजूरी के बिना दर्ज की गई। लालू प्रसाद यादव के वकील ने न्यायमूर्ति रवींदर दूडेजा के सामने कहा कि CBI की जांच अवैध है।
लालू यादव ने वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि सीबीआई ने FIR बिना PC (भ्रष्टाचार निवारण) एक्ट के तहत अनिवार्य मंजूरी के दर्ज की। इसलिए पूरी जांच अवैध है। मंजूरी के बिना जांच शुरू ही नहीं हो सकती थी। पूरे मामले की कार्यवाही गलत है। सिब्बल ने यह भी कहा कि मंजूरी की आवश्यकता तब थी जब यादव रेल मंत्रालय की जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहे थे। उन्होंने आगे कहा कि हम सिर्फ FIR को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। जांच शुरू नहीं हो सकती।
वहीं, CBI ने आरोप लगाया कि लालू प्रसाद यादव इच्छा से ट्रायल कोर्ट में अपने पक्ष की दलील पूरी नहीं कर रहे। न्यायालय ने कहा कि मंजूरी न होने का असर केवल PC एक्ट के तहत अपराधों पर होगा, IPC के मामलों पर नहीं। सुनवाई अगली बार 25 सितंबर को होगी। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 18 जुलाई को ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही रोकने से इनकार कर दिया था। इससे पहले, उच्च न्यायालय ने 29 मई को भी कार्यवाही रोकने का कोई मजबूत कारण नहीं पाया था।
आपको बताते चलें कि,2004 से 2009 के बीच यादव के रेल मंत्री रहते हुए मध्य प्रदेश के जबलपुर रेलवे क्षेत्र में ग्रुप D की नियुक्तियों से जुड़ा है। आरोप है कि नियुक्तियों के बदले कर्मचारियों ने जमीन RJD सुप्रीमो के परिवार या सहयोगियों के नाम ट्रांसफर की। यह FIR 18 मई 2022 को दर्ज की गई थी, जिसमें लालू यादव और उनके परिवार के सदस्य, कुछ अज्ञात सरकारी अधिकारी और निजी लोग शामिल हैं। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि FIR लगभग 14 साल की देरी के बाद दर्ज की गई, जबकि CBI की शुरुआती जांच पहले ही बंद कर दी गई थी। लालू यादव का कहना है कि यह मामला राजनीतिक बदला और प्रतिशोध है और बिना मंजूरी की जांच पूरी तरह से अवैध है।