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Bihar Assembly Election : मुकेश सहनी और कांग्रेस को लेकर तेजस्वी ने बनाया ख़ास मास्टर प्लान; सरकार बनते ही कैबिनेट में दिखेगा यह ख़ास बदलाव;बन सकता है नया इतिहास

Bihar Assembly Election : बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन ने बड़ा दांव खेला है। सूत्रों के अनुसार, अगर गठबंधन सत्ता में आता है तो तीन उपमुख्यमंत्री बनाए जाएंगे—एक दलित, एक मुस्लिम और एक अति पिछड़ा वर्ग से। तेजस्वी यादव होंगे मुख्यमंत्री पद के

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Thu, 09 Oct 2025 09:26:12 AM IST

Bihar Assembly Election

Bihar Assembly Election - फ़ोटो FILE PHOTO

Bihar Assembly Election : आगामी बिहार विधानसभा चुनाव से पहले विपक्षी महागठबंधन (Grand Alliance) सीट बंटवारे और नेतृत्व पर लगभग सहमति के चरण में पहुंच गया है। गठबंधन के भीतर चर्चा चल रही है कि अगर वह सत्ता में आता है, तो तीन उपमुख्यमंत्री बनाए जाएंगे एक दलित, एक मुस्लिम, और एक अति पिछड़ा वर्ग (EBC) समुदाय से। वरिष्ठ राजद और कांग्रेस नेताओं ने बुधवार को बताया कि यह कदम सामाजिक संतुलन और व्यापक प्रतिनिधित्व की दिशा में एक बड़ा प्रयोग होगा। 


महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद का चेहरा तेजस्वी यादव होंगे, जो पिछड़े वर्ग से आते हैं और दो बार बिहार के उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं। हालांकि सहयोगी दलों ने औपचारिक रूप से उनके नाम पर मुहर नहीं लगाई है, लेकिन अंदरूनी स्तर पर इस पर लगभग सहमति बन चुकी है। तेजस्वी का मुकाबला एनडीए उम्मीदवार और मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से होगा, जिनकी सरकार में इस समय दो उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी (ओबीसी) और विजय कुमार सिन्हा (भूमिहार) कार्यरत हैं।


राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने बताया कि सीट बंटवारे का फार्मूला लगभग तय हो गया है। इसके तहत आरजेडी 125 सीटों, कांग्रेस 50-55 सीटों, और वाम दल 25 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। बाकी सीटें वीआईपी, लोक जनशक्ति पार्टी (पशुपति पारस गुट) और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के बीच बांटी जाएंगी। तिवारी के मुताबिक, “यह फॉर्मूला इस बात का संकेत है कि तेजस्वी यादव महागठबंधन के निर्विवाद नेता बनकर उभरे हैं। यह उनकी रणनीति का हिस्सा है जिससे वे आरजेडी की यादव-केंद्रित छवि को बदलकर दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को सत्ता में सीधा प्रतिनिधित्व देना चाहते हैं।”


कांग्रेस नेताने कहा कि तीन उपमुख्यमंत्री का प्रस्ताव राहुल गांधी के सामाजिक समावेशन संदेश का प्रतीक है। उन्होंने कहा, “यह निर्णय सामाजिक न्याय की राजनीति को और व्यापक करने की दिशा में एक प्रतीकात्मक कदम है।” वहीं वीआईपी प्रवक्ता देव ज्योति ने बताया कि गुरुवार शाम तक तेजस्वी यादव को औपचारिक रूप से महागठबंधन का मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया जाएगा और उनकी पार्टी के नेता मुकेश साहनी को उपमुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जा सकता है।


हालांकि, चुनाव से पहले उपमुख्यमंत्री जैसे पदों की घोषणा असामान्य मानी जाती है। लेकिन राजद और सहयोगी दल इसे रणनीतिक कदम बता रहे हैं। पिछले दो दशकों में आरजेडी अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं कर पाई है। 2020 के विधानसभा चुनाव में भी महागठबंधन को बहुमत से कुछ सीटें कम मिली थीं। तब छोटे समुदायों ने यादव-प्रधान राजनीति के खिलाफ एकजुटता दिखाई थी। इसलिए इस बार तेजस्वी सामाजिक समीकरणों का संतुलन साधने पर फोकस कर रहे हैं।


बिहार के राजनीतिक इतिहास में अब तक 10 उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं। पहले उपमुख्यमंत्री अनुग्रह नारायण सिन्हा ने मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिन्हा के साथ 11 साल से अधिक समय तक सत्ता साझा की थी। समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर ने भी उपमुख्यमंत्री पद से मुख्यमंत्री बनने का सफर तय किया। वहीं जगदेव प्रसाद मात्र चार दिन और राम जयपाल सिंह यादव 220 दिन इस पद पर रहे। बीजेपी के सुशील कुमार मोदी ने 10 साल 316 दिन तक उपमुख्यमंत्री रहते हुए राज्य की राजनीति में स्थिरता दी। तेजस्वी यादव अब तक दो कार्यकालों में तीन साल से अधिक समय तक उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं।


राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तीन उपमुख्यमंत्री का प्रस्ताव राजनीतिक संतुलन और प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व दोनों को साधता है। इससे तेजस्वी यादव को कई स्तरों पर लाभ मिल सकता है। पहला—यह कदम वंशवाद के आरोपों को कमजोर करेगा, क्योंकि सत्ता के शीर्ष पदों में विभिन्न समुदायों की भागीदारी दिखेगी। दूसरा—यह आरजेडी की यादव-प्रधान छवि से दूरी का संकेत देगा। तीसरा—यह दलित, मुस्लिम और अति पिछड़ा वर्ग को यह भरोसा दिलाएगा कि उन्हें सत्ता में वास्तविक हिस्सेदारी दी जाएगी।


बिहार विधानसभा की 243 सीटों में बहुमत के लिए 123 सीटें जरूरी हैं। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, महागठबंधन की यह रणनीति बिहार की सामाजिक और राजनीतिक जमीन पर बड़ा असर डाल सकती है। अगर यह फार्मूला कारगर हुआ, तो यह तेजस्वी यादव के लिए ‘मास्टरस्ट्रोक’ साबित हो सकता है और बिहार की राजनीति में एक नए सामाजिक समीकरण की नींव रख सकता है।