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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Wed, 24 Sep 2025 10:58:34 AM IST
आरके सिंह का बड़ा बयान - फ़ोटो FILE PHOTO
Bihar Politics: बिहार की राजनीति में शाहाबाद का इलाका हमेशा से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है। लंबे समय से यहां भाजपा और एनडीए गठबंधन की पकड़ बेहद मज़बूत रही है। लेकिन बीते लोकसभा चुनाव में इस परंपरागत किले को विपक्ष ने हिला दिया। शाहाबाद की हार ने न सिर्फ कार्यकर्ताओं और नेताओं को चौंकाया बल्कि पार्टी नेतृत्व के लिए भी यह एक बड़ा झटका साबित हुआ।
अब इस हार के बाद भाजपा के भीतर से ही बगावती सुर उभरने लगे हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह ने खुलकर नाराज़गी जताई है। आरा में आयोजित राजपूत समाज के एक कार्यक्रम में उन्होंने मंच से सीधे भाजपा नेतृत्व पर सवाल उठाए। आरके सिंह का यह बयान न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि पूरे राज्य की राजनीति में हलचल मचाने वाला है। कार्यक्रम के दौरान आरके सिंह ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि भाजपा और उसके शीर्ष नेतृत्व ने राजपूत समाज की लगातार उपेक्षा की है। उन्होंने आरोप लगाया कि इस बार लोकसभा चुनाव में उन्हें जानबूझकर कमजोर किया गया। उनके अनुसार, पार्टी और गठबंधन के बड़े नेताओं ने भीतरघात कर उन्हें हराने की साजिश रची।
आरके सिंह का यह बयान इसलिए अहम है क्योंकि वे लंबे समय से भाजपा से जुड़े हुए हैं और केंद्र सरकार में भी मंत्री रह चुके हैं। लेकिन अब वे अपनी ही पार्टी के खिलाफ खड़े होते दिखाई दे रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि आरा के कार्यक्रम में आरके सिंह ने समर्थकों के बीच यह संकेत दिया कि वे अब भाजपा के साथ अपनी राजनीतिक यात्रा आगे नहीं बढ़ाना चाहते। उन्होंने कहा कि लगातार उपेक्षा और भीतरघात की वजह से वे नए विकल्प की तलाश में हैं। यहां तक कि उन्होंने अपनी अलग पार्टी बनाने पर भी विचार करने की बात कही। इस ऐलान ने भाजपा की चिंता और बढ़ा दी है। क्योंकि अगर आरके सिंह अलग राह चुनते हैं तो न सिर्फ आरा बल्कि पूरे शाहाबाद इलाके में भाजपा की परंपरागत राजनीति को बड़ा नुकसान हो सकता है।
बिहार में अगले महीने विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होने की संभावना है। सभी दल अपनी-अपनी तैयारियों में जुटे हैं। ऐसे समय में भाजपा के भीतर उठी बगावत पार्टी की चुनावी रणनीति को कमजोर कर सकती है। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अगर आरके सिंह जैसे कद्दावर नेता पार्टी छोड़ते हैं या अलग पार्टी बनाते हैं, तो इसका असर सिर्फ एक-दो सीटों पर नहीं बल्कि पूरे इलाके में देखने को मिलेगा। खासकर शाहाबाद, बक्सर, कैमूर और आसपास के जिलों में भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
आरके सिंह का यह बयान सिर्फ व्यक्तिगत नाराज़गी तक सीमित नहीं है। उन्होंने सीधे-सीधे राजपूत समाज की उपेक्षा का मुद्दा उठाया है। बिहार की राजनीति में राजपूत समुदाय की अहम भूमिका रही है और उनकी नाराज़गी का असर चुनावी समीकरणों पर साफ दिखाई देता है। अगर यह नाराज़गी संगठित रूप ले लेती है, तो भाजपा और एनडीए गठबंधन के लिए विधानसभा चुनाव में सीटें बचाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। आरके सिंह के बगावती सुर विपक्षी दलों के लिए भी सुनहरा मौका बन सकते हैं। महागठबंधन और अन्य विपक्षी दल पहले से ही भाजपा पर पिछड़ों और दलितों को लेकर राजनीति करने का आरोप लगाते रहे हैं। अब अगर राजपूत समाज का एक बड़ा चेहरा भाजपा से अलग होता है, तो विपक्ष इसे अपने पक्ष में इस्तेमाल करने से पीछे नहीं हटेगा।
फिलहाल, भाजपा की रणनीति पर सबकी नजरें टिकी हैं। क्या पार्टी आरके सिंह को मनाने की कोशिश करेगी या फिर उन्हें नज़रअंदाज़ कर आगे बढ़ेगी? यह आने वाला वक्त बताएगा। लेकिन इतना तय है कि आरा से उठी बगावत की आवाज़ ने भाजपा की चुनावी राह को कठिन बना दिया है। बहरहाल, आरके सिंह का बयान बिहार की सियासत में बड़ा भूचाल ला सकता है। विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा को यह संकट संभालना आसान नहीं होगा। शाहाबाद जैसे मजबूत गढ़ में पार्टी की पकड़ ढीली पड़ना और एक वरिष्ठ नेता का बगावती तेवर अपनाना, आने वाले दिनों में पूरे चुनावी परिदृश्य को प्रभावित कर सकता है।