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Climate Change: धरती के नक़्शे से ग़ायब हो जाएंगे ये मशहूर शहर? भारत भी नहीं रहेगा अछूता; समय रहते ठोस कदम उठाने की जरुरत

Climate Change: ग्लोबल वॉर्मिंग और समुद्री जलस्तर वृद्धि से कोलकाता सहित दुनिया के कई शहर पानी में हमेशा के लिए डूब सकते हैं। क्लाइमेट सेंट्रल की रिपोर्ट में चेतावनी, जानिए खतरे और समाधान के बारे में सब कुछ..

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sun, 27 Jul 2025 12:32:17 PM IST

Climate Change

प्रतीकात्मक - फ़ोटो Google

Climate Change: ग्लोबल वॉर्मिंग और बढ़ते समुद्री जलस्तर के कारण दुनिया के कई प्रमुख शहरों का अस्तित्व खतरे में है। वैज्ञानिकों और पर्यावरण विशेषज्ञों की रिपोर्ट्स चेतावनी देती हैं कि अगले कुछ दशकों में कोलकाता, एम्स्टर्डम, वेनिस, न्यू ऑरलियंस, बसरा, हो ची मिन्ह सिटी और बैंकॉक जैसे शहर पूरी तरह या आंशिक रूप से जलमग्न हो सकते हैं। इधर भारत का कोलकाता भी समुद्र तल से मात्र कुछ ही मीटर की ऊंचाई पर बसा है, अपने देश में यह शहर विशेष रूप से संवेदनशील है।


2030 तक इसके कुछ हिस्सों और 2050 तक बड़े क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है। ग्लेशियरों का पिघलना, थर्मल एक्सपैंशन और जमीन का धंसना इस संकट को और गंभीर बना रहे हैं। कोलकाता की स्थिति को और भी जटिल बना देता है इसका पुराना ड्रेनेज सिस्टम और शहरी नियोजन की कमी जो भारी बारिश और चक्रवातों जैसे अम्फान और यास से पहले ही प्रभावित हो चुका है।


कोलकाता पश्चिम बंगाल की राजधानी और पूर्वी भारत का प्रमुख वाणिज्यिक केंद्र है और यह गंगा डेल्टा में बसा है। क्लाइमेट सेंट्रल की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक कोलकाता के निचले इलाके जैसे बारानगर, राजपुर सोनारपुर, हावड़ा के आसपास के क्षेत्र और सुंदरबन नियमित बाढ़ का सामना कर सकते हैं। 2050 तक यदि कार्बन उत्सर्जन नियंत्रित नहीं हुआ तो शहर का बड़ा हिस्सा पानी में भी डूब सकता है।


IPCC की रिपोर्ट यह बताती है कि एशिया में समुद्री जलस्तर वैश्विक औसत (3.7 मिमी/वर्ष) से तेजी से बढ़ रहा है और कोलकाता में 0.6-1.9 मिमी/वर्ष की जमीन धंसने की दर इस खतरे को बढ़ा रही है। सुंदरबन जो UNESCO विश्व धरोहर स्थल है, पहले ही जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हो चुका है, जहां गौरमारा और मौसुनी द्वीपों के निवासियों को 2021 में सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित करना पड़ा। कोलकाता की 30% निचली बस्तियां अगले 30 वर्षों में मिट सकती हैं, जिससे लाखों लोग विस्थापित हो सकते हैं।


वहीं दुनिया के अन्य शहर भी समान संकट का सामना कर रहे हैं। नीदरलैंड्स के एम्स्टर्डम और रॉटरडम जो समुद्र तल से नीचे हैं, ये शहर डाइक सिस्टम के बावजूद 2050 के बाद खतरे में हैं। इराक का बसरा दलदली क्षेत्रों में बसा और वियतनाम का हो ची मिन्ह सिटी जो कमजोर इन्फ्रास्ट्रक्चर वाला है, ये सभी 2030 तक जलमग्न हो सकते हैं।


वेनिस पहले से ही हाई टाइड और बाढ़ से जूझ रहा है और बैंकॉक प्रतिवर्ष 2-3 सेंटीमीटर धंस रहा है, ये दोनों भी 2100 तक पानी में डूबने के कगार पर हैं। न्यू ऑरलियंस पहले से ही तूफानों और बाढ़ से प्रभावित है और इसका आधा हिस्सा समुद्र तल से नीचे है। इन शहरों में बढ़ते जलस्तर के साथ चक्रवातों और भारी बारिश की तीव्रता भी बढ़ रही है, जिससे बुनियादी ढांचे, अर्थव्यवस्था और आजीविका पर गहरा असर पड़ रहा है।


इस संकट से निपटने के लिए तत्काल वैश्विक और स्थानीय उपाय जरूरी हैं। कार्बन उत्सर्जन में कटौती, नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना और समुद्री दीवारों, मैंग्रोव संरक्षण जैसे उपाय प्रभावी हो सकते हैं। कोलकाता के लिए ड्रेनेज सिस्टम को अपग्रेड करना, शहरी नियोजन में सुधार और सुंदरबन जैसे प्राकृतिक अवरोधों को संरक्षित करना महत्वपूर्ण है। भारत सरकार का 2070 तक नेट-जीरो लक्ष्य और एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन जैसे कदम सकारात्मक हैं लेकिन स्थानीय स्तर पर त्वरित कार्यान्वयन जरूरी है। नागरिकों को पर्यावरण जागरूकता बढ़ानी होगी और NGOs के साथ मिलकर तटीय संरक्षण में योगदान देना होगा। यदि समय रहते बेहद ठोस कदम नहीं उठाए गए तो कोलकाता सहित ये सभी शहर आने वाले समय में धरती के नक्शे से मिट सकते हैं।