PATNA: बिहार में नगर निकाय चुनाव को लेकर हाईकोर्ट में सरकार के यू-टर्न के बाद बीजेपी ने नीतीश कुमार पर तीखा हमला बोला है. बीजेपी नेता सुशील मोदी ने कहा है कि नीतीश सरकार की हालत उस पठान की तरह हुई जिसने 100 जूते भी खाये और 100 प्याज भी. अगर नीतीश सरकार ने पहले ही कोर्ट की बात मान ली होती तो इतना ड्रामा नहीं होता. सरकार ने अति पिछड़ों का आरक्षण खत्म करने की साजिश रची थी।
सुशील मोदी ने कहा कि कोर्ट में नीतीश कुमार के अहंकार को मुँहकी खानी पड़ी. उन्हें कोर्ट के सामने आत्म समर्पण करना पड़ा. अगर नीतीश सरकार ने यही फैसला पहले कर दिया होता तो यह फ़ज़ीहत नहीं होती. नीतीश कुमार की हालत उस पठान जैसी है जिसने 100 जूते भी खाए और 100 प्याज़ भी खाया. दरअसल एक पुरानी कहानी के मुताबिक एक पठान को चोरी के आरोप में 100 जूते खाने या 100 प्याज खाने में से कोई एक सजा चुनने को कहा गया था. पठान ने पहले प्याज खाना तय किया लेकिन दो-चार प्याज खाने के बाद हालत बिगड़ गयी. फिर उसने जूते खाने की बात कही लेकिन कुछ जूते पड़ते ही दर्द से घबरा कर फिर प्याज खाने की बात कही. ऐसे ही उसने 100 जूते भी खाये और 100 प्याज भी खा लिया।
वैसे बता दें कि आज हाईकोर्ट में नीतीश सरकार ने निकाय चुनाव में पिछड़ों को आरक्षण को लेकर यू-टर्न मार लिया. दरअसल नीतीश सरकार ने आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को माने बगैर बिहार में चुनाव कराना शुरू कर दिया था. इसके खिलाफ जब कोर्ट में याचिका दायर हुई तो नीतीश सरकार ने कहा कि वह जैसे चुनाव करा रही है वही सही है. लेकिन कोर्ट ने नीतीश सरकार के दावे को पूरी तरह से खारिज करते हुए चुनाव में पिछड़ों के आरक्षण पर रोक लगा दिया था. इस मसले पर 15 दिनों तक सियासी ड्रामे के बाद बिहार सरकार ने आज हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि वह कोर्ट की सारी शर्तें मानने को तैयार है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक बिहार में अति पिछडा आयोग का गठन कर दिया गया है. उसकी अनुशंसा के आधार पर राजनीतिक तौर पर पिछड़े वर्ग को निकाय चुनाव में आरक्षण दिया जायेगा।
अब सवाल ये उठ रहा है कि जब नीतीश सरकार को सुप्रीम कोर्ट का आदेश मानना ही था तो इतना बखेड़ा क्यों खड़ा किया गया. सुप्रीम कोर्ट ने दो साल पहले ही ये स्पष्ट कर दिया था कि ट्रिपल टेस्ट कराये बगैर किसी राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव में पिछड़े वर्ग को आरक्षण नहीं दिया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र सरकार ने फिर से विचार करने की याचिका भी लगायी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया. आखिरकार दोनों राज्यों ने कोर्ट के फैसले के मुताबिक आरक्षण की कवायद शुरू की।
लेकिन बिहार की नीतीश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ताक पर रख कर अपने कायदे कानून से चुनाव कराने शुरू कर दिये. इसके खिलाफ जब हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हुई तो राज्य सरकार ने बड़े बड़े वकीलों को अपने पक्ष में खड़ा कर सरकारी खजाने से पानी की तरह पैसे बहाये. लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ. उधर चुनाव की तैयारियों पर भी भारी भरकम खर्च हुआ. चुनाव में खड़े हुए हजारों उम्मीदवारों ने भी अच्छी खासी रकम खर्च की. कुल मिलाकर खर्च हुए पैसे का हिसाब अरबों रूपये तक पहुंच सकता है. इतना सब कुछ होने के बाद राज्य सरकार ने वही किया जो कोर्ट ने कहा था।