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कावर झील के बहुरेंगे दिन, पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करेगी केंद्र सरकार

1st Bihar Published by: Jitendra Kumar Updated Thu, 21 Nov 2019 09:31:59 AM IST

कावर झील के बहुरेंगे दिन, पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करेगी केंद्र सरकार

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BEGUSARAI: एशिया में वेट लैंड एरिया की सबसे बड़ी झील और बर्ड सेंचुरी कावर झील की हालत अब बदलने वाली है. केन्द्र सरकार ने जलीय इको सिस्टम संरक्षण केन्द्रीय प्लान के तहत देश के एक सौ झीलों में कावर झील को भी शामिल किया है.

जिसके बाद अब केन्द्र सरकार, राज्य सरकार के सहयोग से इसे पर्यटक केन्द्र के रूप में विकसित कर संरक्षण और प्रबंधन करेगी. वहीं, बिहार सरकार के मुख्य वन संरक्षक द्वारा भेजे गए नोटिफिकेशन के प्रस्ताव को भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन विभाग के 55वीं मीटिंग ऑफ स्टैंडिंग कमिटी ने वापस कर दिया है. इसके बाद केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जलीय इको संरक्षण सिस्टम प्लान के तहत कावर वेटलैंड विकास के लिए प्रथम किस्त में 32 लाख 76 हजार आठ सौ रूपया जारी कर दिया गया है.

जिससे जलीय जीवों का विकास, वन्य जीवों का विकास, वेटलैंड प्रबंधन और जल संरक्षण आदि के काम कराये जाएंगे. बदहाल कावर झील के विकास के लिए राज्यसभा सांसद प्रो. राकेश सिन्हा ने 25 जुलाई को सदन में शून्यकाल के दौरान सवाल उठाया था। जिसके बाद जलीय इको सिस्टम के केन्द्रीय प्लान के तहत इसकी स्वीकृति मिली है और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री ने प्रो. राकेश सिन्हा को पत्र लिखकर यह जानकारी दी है.

बिहार के बेगूसराय के कावर झील को प्रकृति ने एक अमूल्य धरोहर के रूप में प्रदान किया है. इस बर्ड संचुरी में 59 तरह के विदेशी पक्षी और 107 तरह के देशी पक्षी ठंड के मौसम में प्रवास करने आते हैं. समुचित मात्रा में पानी बने रहने के लिए प्रथम पंचवर्षीय योजना में तात्कालीन मुख्यमंत्री डॉ श्रीकृष्ण सिंह ने नहर बनवाकर कावर को बूढ़ी गंडक नदी से कनेक्ट कर दिया था. इसके बाद 42 वर्ग किमी 6311 हेक्टेयर क्षेत्र के क्षेत्रफल में फैले इस झील को 1984 में बिहार सरकार ने पक्षी बिहार का दर्जा दिया था. इस झील से उत्तरी बिहार का एक बड़ा हिस्सा कई प्रकार से लाभान्वित होता था. ऊपरी जमीन पर गन्ना, मक्का, जौ आदि की फसलें काफी अच्छी पैदावार देती थी. हजारों मल्लाह इस झील से मछली पकड़ कर अपना जीवन यापन करते थे.  झील के चारों ओर के करीब 50 गांव के मवेशी पालक मवेशियों को यहां की घास खिलाकर हमेशा दुग्ध उत्पादन में आगे रहते थे. ग्रामीण लोग झील के लड़कट (एक प्रकार की घास) से अपना घर बनाया करते थे. लेकिन समुचित जल प्रबंधन नहीं होने के कारण झील की ये सब बातें केवल बातें ही रह गई हैं.

कुछ साल से तो इस झील में घुटने भर भी पानी नहीं रहता है. पहले हजारों मछुआरे इस झील से अपना जीवनयापन करते थे. वहीं अब इस झील से दस-बीस मछुआरों का भी जीवनयापन नहीं होता और वह दूसरे जगह जाने के लिए विवश थे. 42 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाली झील इस साल जून-जुलाई में पांच सौ मीटर के दायरे में सिमट कर रह गई थी. बरसाती पानी बहकर नालों के जरिए पहले झील में गिरता था, परंतु अब इन नालों में गाद भर जाने से पानी झील तक नहीं पहंच पाता है. बाढ़ में आसपास की मिट्टी झील में आने से भी इसकी गहराई कम हो रही है. फिलहाल अब जब भारत सरकार की नजर इस पर गई है तो उम्मीद है कि देश में समग्र गति से हो रहे विकास की तरह कावर झील का भी उद्धार होगा तथा एक बार फिर से इसकी पुरानी पहचान एशिया महादेश के लेवल पर स्थापित होगी. वहीं, पक्षियों की सुरक्षा के लिए कावर के चारों ओर वाच टावर बनाने का काम प्रगति पर है. दूसरी ओर डीएम अरविन्द कुमार वर्मा ने कावर में लगातार जलस्तर बरकरार रखने के लिए लघु सिंचाई प्रमंडल को प्लान बनाने का निर्देश दिया गया है, ताकि उदय सिंचाई योजना के तहत स्वीकृति के लिए राज्य सरकार को भेजा जा सके.