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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Fri, 13 Dec 2024 11:45:55 AM IST
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Bihar Politics: बिहार में स्वास्थ्य क्षेत्र में 'मंगल काल' चल रहा है. आरोग्य पथ पर बिहार आगे बढ़ चला है. सूबे के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय का ऐसा मानना है. हेल्थ मिनिस्टर ने स्वास्थ्य क्षेत्र में 'मंगल काल' पर पुस्तक की रचना की है. अब उस पुस्तक का विमोचन होना है. स्वास्थ्य क्षेत्र में 'मंगल काल' पर रचित पुस्तक के विमोचन को लेकर स्वास्थ्य सह कृषि मंत्री की तरफ से राजधानी में बड़े-बड़े बैनर-पोस्टर लगाए गए हैं. सूबे में स्वास्थ्य व्यवस्था का मंगल काल चल रहा है या अमंगल काल..इसके लिए हाल ही में विधानमंडल में पेश कैग की रिपोर्ट को देखना होगा.
मंगल पांडेय की पुस्तक 'जन स्वास्थ्य का मंगल काल' का विमोचन 17 दिसंबर को
स्वास्थ्य क्षेत्र में मंगल काल. सूबे के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने इस पुस्तक की रचना की है. 17 दिसंबर को पुस्तक का विमोचन कार्यक्रम है. बिहार विधानसभा विस्तारित भवन के सभागार में कार्यक्रम आयोजित की गई है. स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय रचित पुस्तक जन स्वास्थ्य का मंगल काल का विमोचन सूबे के राज्यपाल राजेन्द्र विश्वनाथ अर्लेकर करेंगे. पुस्तक विमोचन कार्यक्रम को लेकर तैयारी चल रही है. मंगल पांडेय की तरफ से पटना की सड़कों पर बैनर-पोस्टर लगाए गए हैं. जिसमें बताया गया है कि 17 दिसंबर को जन स्वास्थ्य का 'मंगल काल' पुस्तक का विमोचन कार्यक्रम है. बताया जाता है कि मंगल पांडेय ने अपने कार्यकाल में स्वास्थ्य क्षेत्र में जो कार्य किए हैं, उसका वर्णन उक्त पुस्तक में की है. बता दें, 2017 में जब एनडीए की सरकार बनी थी, तब मंगल पांडेय स्वास्थ्य मंत्री बने थे, 2017 से 2020 तक. 2020 विधानसभा चुनाव के बाद एनडीए की सरकार बनी. तब भी मंगल पांडेय के जिम्मे स्वास्थ्य विभाग था. अगस्त 2022 तक ये स्वास्थ्य मंत्री रहे. जनवरी 2024 में फिर से एनडीए की सरकार बनी. मंगल पांडेय को स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया. तब से वे इसी विभाग का जिम्मा संभाल रहे हैं.
कैग रिपोर्ट ने स्वास्थ्य व्यवस्था की खोली पोल
बिहार विधानसभा में 28 नवंबर 2024 को कैग की रिपोर्ट पेश की गई. कैग रिपोर्ट से सूबे की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खुल गई. सीएजी की रिपोर्ट से इस बात की पुष्टि हो गई कि स्वास्थ्य क्षेत्र में मंगल काल नहीं बल्कि अमंगल काल चल रहा है. वित्तीय वर्ष 2016-17 से 2021-22 के बीच सरकार द्वारा आवंटित 69790.83 करोड़ रू के बजट में सिर्फ 69% राशि ही खर्च की जा सकी थी. जबकि 21743.004 करोड़ रुपये बिना उपयोग किए रह गए. यह न सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही का प्रमाण है, बल्कि जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ भी है.
चिकित्सकों की काफी कमी
बिहार में मार्च 2022 तक 12.49 करोड़ की अनुमानित आबादी के सापेक्ष विश्व स्वास्थ्य संगठन ( डब्ल्यू एच ओ) की अनुशंसा को पूरा करने के लिए 124919 एलोपैथिक डॉक्टर की आवश्यकता थी. 1000 पर एक डॉक्टर के हिसाब से, जिसके सापेक्ष जनवरी 2022 तक केवल 2148 मरीजों पर एक डॉक्टर उपलब्ध था यानी 58144 एलोपैथिक डॉक्टर ही बिहार में उपलब्ध था.
उपकरण का घोर अभाव
सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में दवा से लेकर स्वास्थ्य सेवा के उपकरण की कमी के तरफ भी इशारा किया है. कैग ने राज्य सरकार को 31 अनुशंसा भी की है, जिसमें मानदंडों और मापदंडों के अनुसार स्वास्थ्य देखभाल इकाइयों में पर्याप्त संख्या में स्वास्थ्य कर्मियों की तैनाती होनी चाहिए. पंजीकरण काउंटर और पंजीकरण कर्मचारियों की संख्या बढाते हुए पंजीकरण के लिए प्रतीक्षा का समय कम होना चाहिए. जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन के लिए व्यापक योजना तैयार होना चाहिए.
स्टाफ की कमी
विभाग के कार्यों स्वास्थ्य सेवा निदेशालय, राज्य औषधि नियंत्रक खाद्य सुरक्षा स्कंध, आयुष और मेडिकल कॉलेज एवं अस्पतालों में 49% रिक्तियां थी. सुकृति बोल के सापेक्ष स्टाफ नर्स की कमी 18% पटना में, 72% की कमी पूर्णिया में थे. वहीं पैरामेडिक्स की कमी 45% जमुई में और 90% पूर्वी चंपारण में थे.
विवेकानंद की रिपोर्ट