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1st Bihar Published by: Updated Sun, 19 Sep 2021 03:48:59 PM IST
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GAYA: 20 सितंबर यानी कल सोमवार से पितृपक्ष की शुरुआत हो रही है। अगले माह 6 अक्टूबर तक पितरों का तर्पण किया जाएगा। 17 दिवसीय पितृपक्ष के दौरान अपने पूर्वजों को लोग श्राद्ध करेंगे और दिवंगत आत्मा की शांति के लिए अनुष्ठान भी करेंगे। गया आकर लोग पुरखों के लिए मोक्ष की कामना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि पितरों के तर्पण से ही पितृ प्रसंन्न होते हैं।
बताया जाता है कि पितृपक्ष के दौरान किसी नई वस्तु की खरीदारी, गृह प्रवेश समेत अन्य मांगलिक कार्य धार्मिक अनुष्ठान करना शुभ नहीं होता है। पितृपक्ष में विधि विधान से पितरों का श्राद्ध करना चाहिए। पितृपक्ष को लेकर ऐसी मान्यता है कि जिस तिथि को किसी व्यक्ति का निधन होता है उसी तिथि को उसका श्राद्ध करने की परंपरा है। श्राद्ध करने से पितृ दोष शांत होता है और पूर्वजों की कृपा हमेशा बनी रहती है।
इस साल पितृपक्ष 20 सितंबर से 6 अक्टूबर तक है। गयाजी को मोक्षधाम कहा जाता है। यही कारण है कि सनातन धर्मावलंबी देश-विदेश से हर साल लाखों की संख्या में गया आते हैं। जिले के डीएम अभिषेक सिंह ने बताया कि इस बार गया में पितृपक्ष मेला नहीं लगेगा लेकिन यहां आने वाले पिंडदानियों को कर्मकांड करने से नहीं रोका जाएगा। लेकिन कर्मकांड के दौरान कोरोना गाइडलाइन का ख्याल रखना होगा।जिसकी निगरानी जिला प्रशासन की टीम करेगी।
कोरोना संक्रमण को देखते हुए बिहार राज्य पर्यटन विभाग ने दो साल पहले ONLINE पिंडदान पैकेज की शुरुआत की थी। कुछ श्रद्धालुओं ने इसे अपनाया भी था लेकिन तीर्थपुरोहित गयापाल पंडा समाज पिंडदान के इस ऑनलाइन सिस्टम को उचित नहीं मानता। गया में इस साल भी पितृपक्ष मेला नहीं लगेगा। पहले भी कोरोना को लेकर इसका आयोजन नहीं किया गया था।
दो वर्षों तक ऑनलाइन पिंडदान हुई लेकिन इस बार पर्यटन विभाग ने अभी तक आनलाइन पिंडदान के संबंध में कोई सूचना जारी नहीं की है और कल से पितृपक्ष की शुरुआत हो रही है। जिले के नगर आयुक्त सावन कुमार ने बताया कि इस बार पितृपक्ष पर मेला नहीं लगेगा लेकिन पिंडदानियों के आगमन की संभावना को देखते हुए मेला क्षेत्र में साफ-सफाई की विशेष व्यवस्था की गयी है। वही स्वास्थ्य विभाग के द्वारा भी कई स्थानों पर कैंप लगाकर कोरोना की जांच और वैक्सीनेशन की व्यवस्था की गयी है।
वही गया में पितृपक्ष में आने वाले अतिथियों के स्वागत की तैयारी की जा रही है। गयापाल पंडा द्वारा यह तैयारी की जा रही है। विष्णुपद परिसर और फल्गु के तट पर कड़ाके की धूप व बारिश से बचने के लिए वाटरप्रूफ पंडाल लगाए जा रहे हैं। इनका मानना है कि पितृपक्ष में आने वाले लोग गया के अतिथि हैं। उन्हें बेहतर सुविधा प्रदान करना हर गयावासियों का कर्तव्य है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार विष्णुपद में प्रतिदिन एक पिंड का अर्पण करना अनिवार्य है। पिछले वर्ष पितृपक्ष मेले के कारण प्रतिबंध था। वैसे गयापाल पंडा ने अपने-अपने पूर्वजों को पिंड अर्पित किया था। इस वर्ष राज्य सरकार ने कोरोना गाइडलाइन के तहत छूट देते हुए विष्णुपद मंदिर के पट खोल दिए हैं तो पितृपक्ष के दौरान श्रद्धालुओं का आना स्वाभाविक है।
गयाजी में पवित्र फल्गु में जलांजलि व विष्णुचरण पर पिंड अर्पित किया जाता है। यह पौराणिक मान्यता है कि फल्गु की रेत और जल से पांव स्पर्श हो जाने पर भी पितर तृप्त हो जाते हैं। यहां भगवान राम ने भी अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान किया था। इसके अतिरिक्त पांच कोस में 54 पिंडवेदियां अवस्थित, जहां श्रद्धालु कर्मकांड करते हैं। इन पिंडवेदियों में विष्णुपद के अतिरिक्त सीताकुंड, रामशिला, प्रेतशिला, धर्मारण्य, मंतगवापी व अक्षयवट प्रमुख हैं।
गयाजी में विभिन्न पिंडवेदियों पर अलग-अलग प्रकार के पिंड समर्पित किए जाते हैं। इनमें सबसे प्रचलित पिंड जौ के आटे, काले तिल, अरवा चावल और दूध से तैयार किया जाता है। यह गोलाकार होता है। पिंडदान में कुश का होना अनिवार्य है। वहीं, प्रेतशिला पिंडवेदी स्थल पर सत्तू का पिंड उड़ाए जाने का विधान है। अंत में अक्षयवट पिंडवेदी पर खोवा का पिंडदान किया जाता है।
गयाजी में पिंडदान की पुरानी परंपरा की एक विशेषता है पंडा पोथी। आपके पूर्वजों के सौ-दो सौ वर्षों का नाम-पता इस पंडा पोथी में मिल जाएगा। इसे वर्षों से बहुत सहेज कर रखा गया है। गयापाल पुरोहितों के पास अपने-अपने क्षेत्र के यजमानों की पीढ़ी-दर-पीढ़ी का दस्तावेज है। लोग इसे खोजते हैं और देखते भी हैं। बदलते परिवेश में पंडा पोथी तो है लेकिन अब वाट्सएप ग्रुप पर सब कुछ हो रहा है।
कर्मकांड की प्रक्रिया, दिवस, पूजा सामग्री आदि के बारे में जानकारी वाट्सएप से दी जा रही है। गयापाल पुरोहितों का युवा वर्ग इसमें दक्ष दिखाई पड़ता है। कई गयापाल पुरोहितों ने वेबसाइट भी बना रखी है। इससे विदेशियों को भी सहूलियत मिलती है। सनातन धर्म के इस कर्मकांड को अब विदेशी भी अपना रहे हैं। इससे कर्मकांड की महत्ता विदेशों में भी बढ़ी है।