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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sat, 23 Nov 2024 04:14:11 PM IST
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GAYA: बिहार विधानसभा की 4 सीटों पर हुए उप चुनाव को 2025 का सेमीफाइनल माना जा रहा था। सत्ता के इस सेमीफाइनल में ना सिर्फ एनडीए पर निगाहें टिकी थी बल्कि प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज पर भी नजर थी। क्योंकि दो साल से प्रशांत किशोर बिहार की पदयात्रा कर रहे थे और चमत्कार का दावा कर रहे थे लेकिन आज जब 4 सीटों के नतीजे सामने आए तो औंधे मुंह गिर गये।
बेलागंज, इमामगंज, तरारी और रामगढ़ की चारों सीटों पर प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज के उम्मीदवारों की हार हुई है। लेकिन प्रशांत किशोर के इमामगंज के उम्मीदवार अब हारने पर कह रहे हैं कि यही हमारी जीत है, अच्छा लग रहा है।
बिहार के 4 विधानसभा के उपचुनाव में एक भी सीट जनसुराज को नसीब नहीं हो पाया है। इसके बावजूद जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार के हौसले बुलंद हैं। हम बात कर रहे हैं इमागंज से जनसुराज के कैंडिडेट रहे जितेंद्र पासवान की। अपनी हार के बाद वो कह रहे हैं हम तो हारकर भी जीत गये हैं। मतगणना केंद्र से बाहर निकलने के बाद उन्होंने मीडिया से बातचीत करते हुए यह बातें कही।
तरारी में जन सुराज कैंडिडेट किरण सिंह को मात्र 5622 मत मिले। वही 36 हजार वोट पाकर इमामगंज से जन सुराज के उम्मीदवार जितेंद्र पासवान हार गए। जितेंद्र पासवान ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि वो हारकर भी जीत गए हैं। यह परिणाम उनकी जीत है। यह उनका पहला चुनाव था और पहली बार में 36 हजार वोट लाना छोटी बात नहीं है। इमामगंज की जनता का उन्हें भरपूर प्यार मिला है। उन्होंने कहा कि चुनाव लड़ने के लिए उन्हें बहुत कम समय मिला। मात्र 15 दिनों में उन्हें जो वोट मिला वह किसी जीत से कम नहीं है।
जितेंद्र पासवान ने आगे कहा कि जिन लोगों ने वोट दिया और नहीं दिया है उन सभी को धन्यवाद और आभार प्रकट करता हूं। 36 हजार वोट मिलने से जितेंन्द्र पासवान काफी उत्साहित नजर आ रहे हैं। उनका कहना है कि 2025 की तैयारी में अब लगना है। पार्टी ने यदि फिर मौका दिया तो पूरी मजबूती के साथ विधानसभा चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे।
फेल हो गये प्रशांत किशोर
प्रशांत किशोर औऱ उऩकी जन सुराज पार्टी ने उप चुनाव वाली चारों सीटों पर उम्मीदवार खड़े किये थे. लेकिन उन्हें इतने बुरे रिजल्ट का अंदाजा नहीं रहा होगा. तरारी, रामगढ़, बेलागंज औऱ इमामगंज चारों सीटों पर जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार हारे. ये हाल तब हुआ जब प्रशांत किशोर ने चुनाव लड़ने में पूरी ताकत झोंक दी थी. पूरे बिहार से उनके तमाम समर्थक इन चार सीटों पर लगातार कैंप कर रहे थे. पैसे और दूसरे संसाधनों की कोई कमी नहीं होने दी थी.
दो सीटों पर लाज बची
उप चुनाव के परिणाम बताते हैं कि बिहार की चारों सीटों पर प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज के उम्मीदवार की हालत खराब रही. वैसे, प्रशांत और उनके समर्थक ये कह सकते हैं कि चारों जगहों पर उऩके उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे. लेकिन दो सीटों तरारी और रामगढ़ में उनकी स्थिति बेहद बुरी रही. तरारी में जन सुराज की उम्मीदवार किरण सिंह को सिर्फ 5हजार 622 वोट मिले. ऐसी ही स्थिति रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र में हुई, जहां जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार सुशील कुमार सिंह को सिर्फ 6 हजार 513 वोट हासिल हुए.
वैसे प्रशांत किशोर के लिए थोड़ी राहत की भी खबर ये है कि उप चुनाव में दो सीटों पर उन्हें लाज बचाने लायक वोट मिल गये. जन सुराज पार्टी ने सबसे ज्यादा वोट इमामगंज सीट पर हासिल हुए. इस सीट पर भी जन सुराज के उम्मीदवार जितेंद्र पासवान तीसरे स्थान पर रहे लेकिन उन्हें करीब 37 हजार वोट मिले.
प्रशांत किशोर और उनकी पार्टी जन सुराज को बेलागंज सीट पर भी इज्जत बचाने लायक वोट मिल गये. प्रशांत किशोर ने इस सीट पर मुसलमान उम्मीदवार उतारा था. ये प्रयोग थोड़ा सफल रहा. जन सुराज के उम्मीदवार मो. अमजद को 17 हजार 825 वोट हासिल हुए. बेलागंज सीट पर मुसलमान वोटरों की संख्या अच्छी खासी है. आरजेडी ने इस सीट पर जीत हासिल करने के लिए अपने तमाम मुसलमान नेताओं को बेलागंज में कैंप करा दिया था. लेकिन फिर भी प्रशांत किशोर के उम्मीदवार मुसलमानों का अच्छा खास वोट लेने में सफल रहे.
आगे की राजनीति पर संकट
बिहार में हुए उप चुनाव से सरकार पर कोई असर नहीं पड़ने जा रहा था. लेकिन इसे 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा था. प्रशांत किशोर 2025 के विधानसभा चुनाव में भी चमत्कार का दावा कर रहे हैं. लेकिन उप चुनाव में उनकी पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन से दावों की हवा निकलती दिख रही है. इससे प्रशांत किशोर के समर्थकों में भी गलत मैसेज गया है.
उप चुनाव के रिजल्ट का एक मैसेज ये भी है कि बिहार के अगले विधानसभा चुनाव में लड़ाई को एनडीए औऱ इंडिया गठबंधन के बीच ही होना है. बिहार में सियासी लड़ाई हमेशा आमने-सामने की होती है. इसमें तीसरे कोण की गुंजाइश कम ही होती है. ऐसे में प्रशांत किशोर की राजनीतिक स्वीकार्यता कम होगी. जाहिर है आने वाले दिन उऩके लिए कठिन साबित होने वाले हैं.