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1st Bihar Published by: Updated Thu, 08 Dec 2022 05:48:26 PM IST
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PATNA : बिहार में कुढ़नी विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव के रिजल्ट के पहले ही वीआईपी यानि विकासशील इंसान पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी पटना में अपने आवास पर घी के लड्डू बनवा रहे थे. 8 दिसंबर को मतगणना के एक दिन पहले मुकेश सहनी के आवास पर हवलाई बैठ गये थे. लेकिन गुरूवार को जब रिजल्ट आया तो उन लड्डू को खाने वाला कोई नहीं था. कुढ़नी में वीआईपी के उम्मीदवार नीलाभ कुमार की जमानत जब्त हो गयी है.
फेल हो गयी मुकेश सहनी की रणनीति
कुढ़नी में हुए विधानसभा उपचुनाव की प्रक्रिया शुरू होते ही मुकेश सहनी की रणनीति साफ हो गयी थी. वीआईपी का मकसद था बीजेपी को हराना. कुढनी से राजद के सीटिंग मल्लाह विधायक अनिल सहनी थे. उनके सजायाफ्ता होने से सीट खाली हुई. लेकिन मल्लाह की सीटिंग सीट पर महागठबंधन ने कुशवाहा उम्मीदवार को उतार दिया. उसके बाद मैदान में उतरे मुकेश सहनी ने अपने आधार वोट यानि मल्लाह जाति के किसी उम्मीदवार को प्रत्याशी बनाने के बजाय भूमिहार जाति के उम्मीदवार को मैदान में उतार दिया.
दरअसल कुढनी विधानसभा क्षेत्र में भूमिहार वोटरों की संख्या अच्छी खासी है. उस क्षेत्र से कई दफे भूमिहार जाति के नेता विधायक चुने जा चुके हैं. भूमिहार बीजेपी के आधार वोट माने जाते हैं. जब मुकेश सहनी ने भूमिहार उम्मीदवार उतारा तो उसी वक्त ये तय हो गया था कि वे बीजेपी के वोट बैंक को बिगाड़ना चाहते हैं. मुकेश सहनी की पार्टी के उम्मीदवार से महागठबंधन को दोहरा फायदा हो रहा था. एक ओर से जहां बीजेपी के वोट कट रहे थे वहीं दूसरी ओऱ मल्लाह वोटरों के बीजेपी के साथ जाने का खतरा भी खत्म होता दिख रहा था.
दरअसल कुढ़नी विधानसभा क्षेत्र में मल्लाह जाति के वोटरों की तादाद भी अच्छी है. महागठबंधन ने जब उनके सीटिंग विधायक के बदले कुशवाहा जाति का उम्मीदवार दिया तो उनका नाराज होना स्वाभाविक था. नाराज मल्लाह वोटरों के बीजेपी के साथ जाने का खतरा था. लेकिन मुकेश सहनी के उम्मीदवार उतारने के बाद ये आकलन किया जा रहा था कि नाराज मल्लाह वोटर उनके साथ चले जायेंगे. लिहाजा बीजेपी में कोई नया वोट बैंक नहीं जुड़ पायेगा.
सारी रणनीति फेल
ऐसे ही तमाम आकलन के बीच मुकेश सहनी के उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे. लेकिन वोटिंग के दिन ही ये साफ हो गया था कि वीआईपी उम्मीदवार कहीं लड़ाई में नहीं है. चर्चा सिर्फ इस बात की हो रही थी कि वीआईपी के उम्मीदवार ने आखिरकार भूमिहारों का कितना वोट काटा. क्या इतना वोट काट लिया जिससे कि बीजेपी की हार हो जाये. मुकेश सहनी ने इसी आकलन के तहत काउंटिंग के एक दिन पहले ही अपने घर घी के लड्डू बनवाने शुरू कर दिये थे. उनका अंदाजा था कि बीजेपी हारेगी और फिर वे भाजपा की हार की खुशी में लड्डू बांटेंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
मुकेश सहनी की सियासत खतरे में
अब सवाल ये है कि मुकेश सहनी का भविष्य क्या होगा. दरअसल बिहार में सरकार चला रहा महागठबंधन मुकेश सहनी को कोई भाव नहीं दे रहा है. लेकिन मुकेश सहनी बीजेपी का वोट काट रहे थे लिहाजा राजद औऱ जेडीयू के लिए उनकी थोड़ी बहुत महत्ता बनी हुई थी. लेकिन कुढ़नी परिणाम के बाद अब ये धारणा भी खत्म होने पर है. दरअसल मुकेश सहनी जिस वोट बैंक की राजनीति करते हैं उसका सबसे मजबूत गढ मुजफ्फरपुर जिला ही है. उसी जिले में अगर मुकेश सहनी इतना भी वोट नहीं ला पाये जिससे कि बीजेपी हार जाये तो फिर राजद-जेडीयू को उनसे क्या मतलब. वैसे भी 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान हुए वाकये को तेजस्वी यादव नहीं भूले हैं जब महागठबंधन के प्रेस कांफ्रेंस में मुकेश सहनी ने तेजस्वी पर पीठ में खंजर भोंकने का आरोप लगा दिया था.
दूसरी ओर बीजेपी ने भी साफ कर दिया है कि वह मुकेश सहनी से कोई बात नहीं करेगी. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कुढ़नी का रिजल्ट आने के बाद साफ तौर पर कहा कि मुकेश सहनी नीतीश औऱ तेजस्वी के एजेंट बन कर भाजपा को हराने के लिए चुनाव लड़ रहे थे. बीजेपी के एक सीनियर नेता ने कहा कि उनकी पार्टी 2020 वाला भूल नहीं करने वाली है. 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान तेजस्वी यादव ने मुकेश सहनी को आउट कर दिया था. उसी चुनाव में मुकेश सहनी की राजनीति खत्म हो जाती. लेकिन बीजेपी ने उन्हें बुलाकर 11 सीट दी. मुकेश सहनी चुनाव हार गये फिर भी उन्हें एमएलसी बनाकर मंत्री बनाया. लेकिन उसके बाद मुकेश सहनी ने बीजेपी को ही डैमेज करना शुरू कर दिया.
भाजपा के एक नेता ने बताया कि बिहार बीजेपी की कमान को अपने हाथ में लेने वाले अमित शाह ने ही तय कर लिया है कि मुकेश सहनी को दूर रखना है. तभी जब गोपालगंज औऱ मोकामा में उपचुनाव हुए तो अमित शाह ने खुद बात कर चिराग पासवान को अपने पक्ष में प्रचार करने के लिए मनाया. कुढ़नी में फिर से चिराग पासवान को प्रचार करने के लिए कहा गया. लेकिन मुकेश सहनी का कोई नोटिस नहीं लिया जा रहा है.
अब सवाल ये है कि जब महागठबंधन औऱ भाजपा दोनों ही मुकेश सहनी से दूरी बनाकर चलेंगे तो फिर उनकी पॉलिटिक्स का क्या होगा. बिहार की राजनीति हमेशा दो ध्रुवों में सिमटी रही है. इसमें तीसरा एंगल बनाने की कोशिश करने वाले खुद मिट गये हैं. ऐसे में देखना होगा कि मुकेश सहनी आगे कौन सा सियासी चाल चलते हैं.