PATNA: बिहार विधानसभा चुनाव के बाद जब नीतीश कुमार ने करारी हार की समीक्षा करने के लिए अपनी पार्टी की बैठक बुलायी थी तो सबसे ज्यादा चर्चा राजेंद्र सिंह की हुई थी. बीजेपी के कद्दावर नेता रहे राजेंद्र सिंह विधानसभा चुनाव में पार्टी से विद्रोह कर चुनाव में उतर गये थे. वह सीट जेडीयू के नेता और तत्कालीन मंत्री जय कुमार सिंह की थी.
राजेंद्र सिंह के चुनाव मैदान में उतरने का असर ये हुआ कि जय कुमार सिंह तीसरे नंबर पर रहे. चुनाव बाद जेडीयू की समीक्षा बैठक में राजेंद्र सिंह के साथ साथ बीजेपी को जमकर कोसा गया था. दोनों पर साजिश करने का आरोप लगाया गया था. एक साल तक राजेंद्र सिंह को लेकर खामोश रही बीजेपी ने आज फिर उन्हें पार्टी में वापस शामिल करा लिया. दिलचस्प बात देखिये राजेंद्र सिंह पार्टी में शामिल हुए और ट्विटर पर खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें फॉलो करना शुरू कर दिया. प्रधानमंत्री के इस एक क्लीक का मैसेज बहुत बड़ा है.
कब तक खामोश रहती बीजेपी
बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी की करारी शिकस्त के बावजूद बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया था. उसके बाद का घटनाक्रम जगजाहिर है. जेडीयू ने पिछले एक साल में ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ा जब बीजेपी को गाली दी जा सके या उसे डैमेज किया जा सके. विधानसभा चुनाव के बाद दो-महीनों तक जेडीयू नेता बीजेपी को ताबड़तोड़ और खुले मंच से गालियां देते रहे. आरोप लगाते रहे कि बीजेपी के कारण चुनाव में जेडीयू की हार हुई. जातिगत जनगणना के बहाने बीजेपी को महीनों कोसा गया.
बिहार को विशेष राज्य के दर्जे के जिस मुद्दे को जेडीयू खुद दफन कर चुकी थी उसे बाहर निकाल कर बीजेपी को घेरा गया. मजे की बात ये रही कि जो पार्टी बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी है उसके नेता नीतीश कुमार को देश का प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव जेडीयू की बैठक में पारित करा लिया गया. पिछले 10 दिनों से सम्राट अशोक पर एक नाटककार की टिप्पणी के बहाने बीजेपी पर जेडीयू के हर नेता ने हमला बोला. सियासी हलके में ये सवाल पूछा जा रहा था कि बीजेपी आखिरकार कब तक खामोश रहेगी. इस सवाल का जवाब मिल गया.
इसलिए अहम है राजेंद्र सिंह की वापसी
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में बागी बनकर लड़े राजेंद्र सिंह को आज बेतिया में प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल के घर पर बुलाकर बीजेपी में वापस शामिल करा लिया गया. प्रधानमंत्री ने उन्हें ट्वीटर पर फॉलो करना शुरू कर दिया. बीजेपी के कई बडे नेताओं ने उनके स्वागत में कसीदे गढ़े. वैसे हम आपको बता दें कि राजेंद्र सिंह कोई बड़े जनाधार वाले नेता नहीं है. वे बीजेपी में भले ही अहम पदों पर रहे हों, जनता के बीच कोई बड़ा जनाधार नहीं है. लेकिन इसके बावजूद बीजेपी में उनका इस गर्मजोशी से स्वागत हो रहा है तो मैसेज साफ है.
दरअसल 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी में एक सहमति बनी थी. जो भी नेता बागी होकर लोजपा के टिकट पर चुनाव लडे थे उन्हें पार्टी में वापस नहीं लेना है. इसके पीछे नीतीश कुमार थे. बीजेपी पर नीतीश कुमार का दबाव था. उसे नीतीश की नाराजगी का डर था. तभी राजेंद्र सिंह, उषा विद्यार्थी, रामेश्वर चौरसिया जैसे कद्दावर नेता जो लोजपा के उम्मीदवार बन गये थे उन्हें एंट्री नहीं दी जा रही थी. राजेंद्र सिंह को आज पार्टी में शामिल करा कर बीजेपी ने साफ मैसेज दिया है कि अब नीतीश की नाराजगी की परवाह नहीं है. जानकार बता रहे हैं कि राजेंद्र सिंह के बाद अब रामेश्वर चौरसिया, उषा विद्यार्थी जैसे नेताओं की भी वापसी होगी.
जेडीयू को उसी भाषा में जवाब मिलेगा
राजेंद्र सिंह की घर वापसी सिर्फ एक संदेश है. दूसरे मोर्चे पर भी जेडीयू को मैसेज दिया जा रहा है. जहरीली शराब से नीतीश कुमार के नालंदा में 11 लोगों की मौत हो गयी है. उसके बाद बीजेपी के नेताओं ने जो हमला बोला है उससे ऐसे लग रहा है जैसे कोई विपक्ष की पार्टी बोल रही हो. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष, बीजेपी कोटे से राज्य सरकार में मंत्री, पार्टी प्रवक्ता हर कोई सरकार पर सवाल उठा रहा है. सबसे ज्यादा सवाल पुलिस पर उठाये जा रहे हैं. इसका भी मकसद औऱ मतलब साफ है. नीतीश कुमार सिर्फ मुख्यमंत्री ही नहीं बल्कि बिहार के गृह मंत्री भी हैं. पुलिस डायरेक्ट उनके अंडर है. ऐसे में अगर पुलिस पर सवाल उठाये जा रहे हैं तो निशाना नीतीश कुमार ही हैं.
अब आर-पार की लड़ाई के आसार
ऐसे वाकयों का नतीजा क्या होगा ये भी दिखने लगा है. अब आर-पार की लड़ाई होगी. दरअसल बीजेपी को शुरू से ये डर सताता रहा है कि नीतीश कुमार कभी भी पलटी मार सकते हैं. वे किसी भी वक्त राजद के साथ जा सकते हैं. उनके राजद के साथ जाने से बिहार की सियासत बदल सकती है. लेकिन अब संकेत मिल रहा है कि बीजेपी इस डर से बाहर निकल रही है. बीजेपी अगर सख्त होगी तो जेडीयू के लिए मुश्किलें होंगी. राजद साफ कर चुकी है कि वह नीतीश को मुख्यमंत्री नहीं मानेगी. नीतीश को अगर साथ आना है तो तेजस्वी को सीएम मानना होगा. लेकिन नीतीश कुमार कुर्सी छोड़ कर किसी पार्टी से समझौता कर लें, ये मुमकिन नहीं दिखता. कुल मिलाकर कहा यही जा सकता है कि नीतीश और उनकी सेना या तो बैक होगी या फिर सरकार की वह फजीहत होगी जिससे नीतीश औऱ जेडीयू के भविष्य की संभावनायें हवा हो जायेंगी.