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उत्तराखंड के दशरथ मांझी केसर सिंह ने कई गांवों को बाढ़ से बचाया, 12 साल में बदल दिया नदी का रुख

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sat, 20 May 2023 08:53:08 PM IST

उत्तराखंड के दशरथ मांझी केसर सिंह ने कई गांवों को बाढ़ से बचाया, 12 साल में बदल दिया नदी का रुख

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DESK:बिहार के दशरथ मांझी माउंटेन मैन के नाम से भी जाने जाते हैं। दशरथ मांझी ने यह साबित कि कोई भी काम असंभव नहीं है। दशरथ मांझी के पास पैसे नहीं थे ना ही ताकत थी फिर भी उसने एक पहाड़ को खोदकर रास्ता बना दिया था। 22 वर्षो की कठिन मेहनत से उन्होंने सड़क बनायी जिसका इस्तेमाल आज गांव वाले करते हैं। दशरथ मांझी की तरह उत्तराखंड के केसर सिंह भी हैं जो 12 साल से पत्थरों को इक्ट्ठा कर नदी के रुख को मोड़ दिया। ऐसा कर उन्होंने एक दर्जन से अधिक गांवों को बाढ़ के खतरे से बचा लिया।


पहले इन गांवों में बाढ़ का पानी घुस जाता था जिसके बाद लोगों का वहां से पलायन शुरू हो जाता था। लोगों की इस समस्या से केसर सिंह वाकिफ थे। उन्होंने बिना किसी सरकारी मदद के ऐसा काम कर दिखाया जिसकी सब कोई तारीफ करते हैं। 58 साल के केसर सिंह उत्तराखंड के बनबसा के रहने वाले हैं। उन्होंने जो काम किया है वो काम आज तक किसी ने नहीं की। वे 12 साल से नदी के रुख को मोड़ने के लिए पत्थरों को इक्ट्ठा कर रहे थे और आखिरकार उन्हें सफलता मिल ही गयी। उन्होंने कई गांव को बाढ़ के खतरे से बचा लिया। जहां लोगों की सबसे बड़ी समस्या बाढ़ की थी। जिसे इस समस्या से निजात दिलाने का काम केसर सिंह ने किया है। 


दरअसल जिस गांव में केसर सिंह रहते है वहां एक मंदिर है जहां लोग पूजा पाठ करने आते है। यहां एक परंपरा थी कि जो भी मंदिर आता वह एक छोटा सा पत्थर लेकर आता था। मंदिर में उस पत्थर को चढ़ाता था। बचपन में केसर सिंह मंदिर में यह सब कुछ देख चुके थे। यही बात उन्हें जवानी में उस वक्त याद आई जब गांव के लोग भीषण बाढ़ की चपेट में आ गये। केसर सिंह ने सोचा कि यदि पत्थरों को इकट्ठा करके बड़ा अंबार लगा दिया जाए तो इससे नदीं के रुख को मोड़ा जा सकेगा जिससे लोगों को बाढ से मुक्ति मिल सकेगी। 


केसर सिंह ने जैसा मन में सोचा था ठीक वैसा ही किया और नदी का रुख मोड़ने में उन्हें सफलता भी मिली। इस दौरान उन्हें पैर की एक उंगली भी गंवानी पड़ गयी। लेकिन फिर भी वे इस काम में डटे रहे। पत्थर उठाकर नदी के किनारे ले जाते केसर सिंह को देख गांव का हर व्यक्ति उन्हें पागल कहता था। खुद उनकी पत्नी उन्हें पागल कहती थी। गांव के लोगों ने तो उनकी मदद करने तक से मना कर दिया था। बिना किसी सरकारी मदद के केसर सिंह ने नदी का रुख मोड़ दिया।