PATNA: दिल्ली में आज RJD का सियासी तमाशा हुआ। शरद यादव ने अपनी पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल का राजद में विलय कर दिया। दिल्ली में जलसा हुआ, जहां शरद यादव ने अपनी पार्टी को पूरी तरीके से राजद में विलय करने का एलान किया। लेकिन अब दिलचस्प बात जानिये, शरद यादव जिस पार्टी के खुद मेंबर ही नहीं हैं उस पार्टी का विलय कैसे कर दिया। सियासी हलके में ये चर्चा का विषय बना हुआ है।
दिल्ली में आज लोकतांत्रिक जनता दल का राजद में विलय के बाद शरद यादव ने दावा किया कि देश भर में बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकता की शुरूआत हो गयी है। विपक्षी पार्टियों को एकजुट करन के लिए ही उन्होंने अपनी पार्टी का विलय राजद में किया है। अब वे और उनके लोग तेजस्वी यादव के नेतृत्व में विपक्षी एकता को मजबूत करने की कोशिश करेंगे।
शरद की पार्टी में कौन था?
शरद यादव ने अपनी पार्टी का विलय तो कराया लेकिन सवाल ये उठ रहा है कि उनकी पार्टी में था कौन? हकीकत तो ये है कि शरद यादव खुद उस पार्टी यानि लोकतांत्रिक जनता दल में नहीं थे, जिसका विलय उन्होंने राजद में करने का एलान किया। यकीन न हो तो 2019 के लोकसभा चुनाव को देखिये। 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में खुद शरद यादव राजद के टिकट पर बिहार के मधेपुरा से चुनाव लड़े थे। उससे एक साल पहले ही उन्होंने लोकतांत्रिक जनता दल का गठन किया था। लेकिन अपनी बनायी हुई पार्टी से चुनाव नहीं लड़े। जाहिर है राजद से चुनाव लड़ने से पहले उन्होंने राजद की सदस्यता भी ली होगी। हालांकि शरद चुनाव हार गये थे।
LJD के सारे नेता तो पहले से ही राजद में हैं
बात सिर्फ शरद यादव की ही नहीं है. शरद यादव ने 2018 में अपनी पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल का गठन किया था. वे उसके संरक्षक बने थे. बिहार में जो प्रमुख नेता उनके लोकतांत्रिक जनता दल में थे उनका नाम जान लीजिये. रमई राम लोजद के प्रदेश अध्यक्ष थे. पूर्व सांसद अर्जुन राय राष्ट्रीय महासिचव थे. पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी लोजद के प्रमुख पदाधिकारी थे. ये तमाम नेता काफी पहले ही राजद में शामिल हो चुके हैं. फिर शरद यादव ने किन लोगों का राजद में विलय कराया।
दिलचस्प बात ये भी है कि शरद यादव की बेटी सुभाषिणी यादव भी उनकी पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल की सदस्य नहीं थी. 2020 में बिहार में जब विधानसभा का चुनाव हुआ तो सुभाषिणी यादव कांग्रेस के टिकट पर मधेपुरा के बिहारीगंज विधानसभा सीट से चुनाव लड़ी थी. यानि शरद यादव की बेटी भी अपने पिता की पार्टी में नहीं थी. वैसे सुभाषिणी यादव भी विधानसभा चुनाव में हार गयी थीं।
विलय का मतलब क्या है?
बिहार में सियासत करने वालों को वह दौर भी याद है जब शरद यादव राष्ट्रीय राजनीति करते थे औऱ लालू यादव बिहार में उनके कैंप के नेता हुआ करते थे. लेकिन लगातार पार्टियां बदलते हुए शरद यादव अब मुख्यधारा की सियासत से बाहर हो चुके हैं. शरद यादव की तबीयत भी उनका साथ छोड़ चुकी है।
चर्चा ये हो रही है कि शरद यादव को राज्यसभा भेजा जायेगा. लेकिन राजद के वरीय नेता ने इसे सिरे से खारिज कर दिया. उनके मुताबिक शऱद यादव को राज्यसभा भेजने की चर्चा पूरी तरह से गलत है. इस साल होने वाले राज्यसभा चुनाव में राजद के हिस्से सिर्फ दो सीट आयेगी. एक सीट लालू परिवार की मीसा भारती के लिए रिजर्व है. मीसा का कार्यकाल इसी साल समाप्त हो रहा है. लालू या तेजस्वी दूसरी सीट भी किसी यादव को देकर अपने पैर पर कुल्हाड़ी क्यों मारेंगे।
इस सियासी हकीकत को शऱद यादव भी समझ रहे हैं. शरद यादव के एक करीबी नेता ने बताया कि उनका लक्ष्य अब अपने बेटे औऱ बेटी को पॉलिटिक्स में सेटल करना है. विलय का सियासी तमाशा इसलिए ही हुआ है कि राजद में शरद यादव के बेटे औऱ बेटी को जगह मिल जाये. लेकिन वह भी संभव हो पायेगा या नहीं ये वक्त बतायेगा।