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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Wed, 07 May 2025 12:06:04 PM IST
बिहार न्यूज - फ़ोटो GOOGLE
Bihar News: बिहार एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी, पटना के वाइस चांसलर डॉ. इंद्रजीत सिंह की नियुक्ति को लेकर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। इस संबंध में राजेंद्र कुमार बघेरवाल नामक व्यक्ति ने पटना हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिसमें डॉ. सिंह पर अपने अतीत से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियाँ छिपाकर वाइस चांसलर पद प्राप्त करने का आरोप लगाया गया है। याचिकाकर्ता के अनुसार, डॉ. इंद्रजीत सिंह की नियुक्ति से पहले वह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) में प्रिंसिपल साइंटिस्ट के पद पर कार्यरत थे। उनके विरुद्ध 7 अगस्त, 2003 से एक अनुशासनात्मक कार्रवाई का मामला लंबित है, जिसका संबंध सेवा में रहते हुए की गई कथित अनियमितताओं से है।
इस मामले में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने पहले कार्यवाही पर रोक लगाई थी, जिसे 2024 में निष्पादित किया गया। कोर्ट ने ICAR को निर्देश दिया कि या तो डॉ. सिंह को उनके सेवानिवृत्ति लाभ प्रदान किए जाएं या फिर उनके खिलाफ कारण बताओ नोटिस के आधार पर कार्रवाई की जाए। इसके बाद ICAR ने उनके खिलाफ अनुशासनिक कार्रवाई को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया, जो अब भी लंबित है। इतना ही नहीं, याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि डॉ. सिंह के खिलाफ एक अन्य मामले में जमानती वारंट भी जारी हुआ था, जिसे बाद में निष्पादित किया गया।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि 2024 में जब बिहार एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी में वाइस चांसलर की नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया गया, तब डॉ. इंद्रजीत सिंह ने अपनी अयोग्यता से संबंधित तथ्य और अपने खिलाफ चल रहे मामलों की जानकारी छिपाई। उन्होंने गलत तथ्यों के आधार पर आवेदन दिया और चयनित हो गए। याचिकाकर्ता ने सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत विश्वविद्यालय के पब्लिक इनफार्मेशन ऑफिसर से नियुक्ति से संबंधित दस्तावेजों की मांग भी की थी। इसके अतिरिक्त, उन्होंने आरोप लगाया कि इस नियुक्ति में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के दिशानिर्देशों का भी उल्लंघन किया गया है।
याचिकाकर्ता के वकील अधिवक्ता रौशन ने बताया कि इस मामले में सभी आवश्यक दस्तावेज और जानकारी बिहार के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति (राज्यपाल) को भी प्रस्तुत की गई है। उन्होंने कहा कि यह मामला न केवल प्रशासनिक पारदर्शिता का उल्लंघन है, बल्कि उच्च शैक्षणिक पदों पर नियुक्ति प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़ा करता है। अब इस मामले की पटना हाईकोर्ट में शीघ्र सुनवाई की संभावना है और यदि आरोप सिद्ध होते हैं, तो वाइस चांसलर की नियुक्ति रद्द हो सकती है।