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Bihar Corruption: बिहार में इलाज के नाम पर फर्जीवाड़ा, मेडिकल जांच में DPO की खुली पोल

Bihar Corruption: बिहार के शिक्षा विभाग में एक और वित्तीय अनियमितता का बड़ा मामला सामने आया है। इस बार आरोप शिवहर जिले के जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (डीपीओ) पर है, जिन्होंने इलाज के नाम पर चिकित्सा प्रतिपूर्ति राशि की मांग की थी.

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Fri, 20 Jun 2025 07:40:45 AM IST

Bihar Corruption

शिक्षा विभाग में मेडिकल क्लेम घोटाला - फ़ोटो GOOGLE

Bihar Corruption: बिहार के शिक्षा विभाग में एक और वित्तीय अनियमितता का बड़ा मामला सामने आया है। इस बार आरोप शिवहर जिले के जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (डीपीओ) पर है, जिन्होंने इलाज के नाम पर ₹1,57,081 की चिकित्सा प्रतिपूर्ति राशि की मांग की थी, जबकि जांच में सामने आया कि वास्तविक खर्च केवल ₹46,273 था। यह मामला तब उजागर हुआ जब शिक्षा विभाग ने इस प्रस्ताव की सत्यता की जांच के लिए इसे श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (SKMCH), मुजफ्फरपुर भेजा।


जांच के दौरान अधीक्षक ने पाया कि डीपीओ द्वारा प्रस्तुत किए गए बिलों में ₹1,10,808 की अतिरिक्त राशि शामिल की गई थी। मेडिकल अधीक्षक ने उस पर सहमति देने से इनकार करते हुए मात्र ₹46,273 की स्वीकृति दी और शेष राशि की कटौती कर दी। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि यह प्रतिपूर्ति राशि ₹1 लाख से कम होने के कारण, उसे डीईओ (जिला शिक्षा पदाधिकारी) को वापस कर दिया गया।


इस खुलासे के बाद शिक्षा विभाग के विशेष सचिव अनिल कुमार ने इसे गंभीर वित्तीय कदाचार माना है और शिवहर के डीईओ से तत्काल स्पष्टीकरण मांगा है। विभाग का कहना है कि यदि इस पर संतोषजनक जवाब नहीं मिला तो डीपीओ सहित संबंधित अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई की जाएगी। विभाग के सूत्रों के अनुसार, यह सिर्फ एक मामला नहीं है बल्कि इस प्रकार की फर्जी चिकित्सा प्रतिपूर्ति की एक बड़ी श्रृंखला का हिस्सा हो सकता है।


शिक्षा विभाग अब यह समीक्षा करने की प्रक्रिया में है कि पूर्व में कितनी बार और किन-किन अधिकारियों ने चिकित्सा व्यय के नाम पर बढ़ी हुई या फर्जी राशि की मांग की थी। इस घटनाक्रम ने पूरे विभाग में हड़कंप मचा दिया है, और कई अधिकारी अब जांच के दायरे में आ सकते हैं।


सूत्रों का मानना है कि सरकारी विभागों में चिकित्सा प्रतिपूर्ति में हेराफेरी कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस बार मामला पकड़ में आ गया है, जिससे अब और भी पुराने मामलों की परतें खुल सकती हैं। अगर विभाग इस दिशा में गहराई से जांच करता है, तो कई वरिष्ठ अधिकारियों पर गाज गिर सकती है।


यह मामला केवल एक वित्तीय धोखाधड़ी नहीं बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही और पारदर्शिता की गंभीर परीक्षा भी है। शिक्षा विभाग जैसे अहम संस्थान में इस प्रकार की धोखाधड़ी से न केवल सरकारी खजाने को नुकसान होता है, बल्कि जनता का भरोसा भी कमजोर होता है।