NDA Seat Sharing: बिहार चुनाव 2025: NDA सीट बंटवारा लगभग तय, बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक आज; इस दिन आ सकता है कैंडिडेट के नाम का लिस्ट Bihar Crime News: भूमि विवाद में हिंसक झड़प, फायरिंग में इनकम टैक्स इंस्पेक्टर को लगी गोली; हालत गंभीर Land for Job Case : लैंड फॉर जॉब केस में आएगा बड़ा फैसला, लालू-राबड़ी-तेजस्वी दिल्ली रवाना; बिहार चुनाव से पहले बढ़ेगी RJD परिवार की टेंशन Bihar Election 2025 : Bihar Election 2025: दिल्ली में कांग्रेस की बड़ी बैठक, तेजस्वी यादव-राहुल गांधी की मुलाकात से तय हो सकता है सीट शेयरिंग फॉर्मूला Bihar News: दिसंबर तक बिहार से इन राज्यों के लिए कई जोड़ी स्पेशल ट्रेनों का ऐलान, लिस्ट जारी.. UPI New Rule: UPI में बड़ा बदलाव, इस दिन से मिलेगा नया फिचर, अब ऑटोपेमेंट्स और बिल्स को ऐसे मैनेज करना होगा आसान Bihar Election 2025: मोकामा की राजनीति में दिखेगा नया रंग,दो बाहुबलियों की लड़ाई में किसे चुनेगी जनता; एक ही कास्ट पर दोनों की पकड़ Bihar Election 2025: राजधानी के आसमान में छाया चुनावी रंग, रोजाना उड़ेंगे 17 हेलीकॉप्टर, तैयारियों में जुटी एयरपोर्ट अथॉरिटी Bihar News: बिहार के इस जिले से गुजरेगा 6 लेन एक्सप्रेस-वे, जमीन अधिग्रहण का काम शुरू Bihar News: अब ट्रैफिक से मिलेगी राहत, यह बाइपास हुआ शुरु; आरा-पटना और नेपाल जाना हुआ आसान
1st Bihar Published by: First Bihar Updated Thu, 19 Dec 2024 04:14:58 PM IST
- फ़ोटो
BETTIAH: पश्चिम चंपारण के बेतिया में एक भावुक कर देने वाली घटना सामने आई है। यहां फेसबुक (Facebook) ने एक परिवार को फिर से एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई है। पिपरासी प्रखंड के परसौनी गांव में रहने वाले मनीष गिरी 8 साल की उम्र में घर से नाराज होकर भाग गए थे। 16 साल तक लगातार खोजबीन के बाद भी उनका कोई सुराग नहीं मिला था। परिवार वाले उन्हें मृत मान चुके थे।
लेकिन, सोशल मीडिया के इस दौर में, फेसबुक ने एक चमत्कार किया। साल 2008 में घर से फरार हुए मनीष ने फेसबुक पर अपने गांव के मुखिया और बीडीसी को देखा और उन्हें पहचान लिया। उन्होंने उनसे संपर्क किया और अपने परिवार के बारे में जानकारी मांगी। जब उन्हें पता चला कि उनके माता-पिता अभी भी जीवित हैं, तो वे घर लौटने के लिए बेताब हो गए।
मनीष के घर लौटने पर पूरा गांव खुशी से झूम उठा। उनके माता-पिता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। इतने सालों बाद बेटे को जिंदा देखकर उनकी आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े। मनीष ने गांव वालों को बताया कि घर से भागने के बाद वह ट्रेन से किसी तरह से बंगलौर चला गया था। बचपन में किसी तरह से इधर-उधर घूमकर पेट भरता रहा और बाद में लेबर का काम करने लगा। लेबर का काम करते करते वह बिल्डिंग मिस्त्री बन गया।
मनीष ने बताया कि उसे सिर्फ अपने पंचायत और पिता का नाम याद था। लेकिन उसका घर कहां है इस बात की जानकारी उसे नहीं थी। एक महीने पहले फेसबुक पर अपने पंचायत के मुखिया और बीडीसी को देखा। जिसके बाद उसने सर्च करना शुरू कर दिया। फेसबुक के जरिए पंचायत के जनप्रतिनिधियों का नंबर जुगाड़ किया और उनसे बात की तो उसे पता चला कि उसके पिता जिंदा हैं। इसके बाद आखिरकार किसी तरह से वह अपने गांव पहुंच गया।